गेहूँ के जवारे के फायदे से पहले समझें क्या है गेहूँ का जवारा what is wheat grass ? गेहूं की पौध को गेहूं का ज्वारा कहते हैं । यानी गेहूं...
गेहूँ के जवारे के फायदे से पहले समझें क्या है गेहूँ का जवारा what is wheat grass ? गेहूं की पौध को
गेहूं का ज्वारा कहते हैं । यानी गेहूं के बीच जब जमीन में रोपित किए जाते
हैं तो 7 से 8 दिन में जो पौध बनकर तैयार होती है वो गेहूं का ज्वारा
कहलाती है । इसे अंग्रेज़ी में Wheat Grass कहते हैं । इसके फायदे अनेक
हैं, आयुर्वेद में इसके रस को संजीवनी बूटी कहा गया है । आजकल ये
आयुर्वेदिक औषधि के रूप में आसानी से उपलब्ध है ।
सेहत के रखवाले
हरी दूब और गेहूं के जवारे गेहूं के जवारों के रस को अमृत रस कहा जाता है,
इसका उपयोग विकसित देशों में क्यों बढ़ता जा रहा है ।
गेहूं के जवारे में पाए जाने पोषक तत्व (Health nutrition in wheat grass)
यूं
तो इस घास को सदा से ही पूजनीय माना जाता रहा है अधिक गौर करने वाली बात
यह है कि इसका उपयोग मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। इसमें कुछ
ऐसे मुख्य पोषक तत्व हैं जो प्रकृति ने कूट-कूट कर भर दिये हैं। इसमें
मौजूद सभी पोषक तत्वों का पता वैज्ञानिक नहीं लगा पाए हैं, फिर भी कुछ तत्व
जिनके बारे में पता है ।
इस प्रकार हैं - बीटा केरोटीन, फोलिक एसिड, क्लोरोफिल, लौह तत्व, कैल्शियम, मैग्नीशियम, एंट
आॅक्सीडेंट, विटामिन बी काॅम्पलेक्स,विटामिन के आदि। बीटा कैरोटीन, शरीर में बीटा कैरोटीन विटामिन ‘ए’ में परिवर्तित हो जाता है।
सभी
जानते हैं कि विटामिन ‘ए’ हमारी त्वचा एवं आंखों की रोशनी के लिए कितना
महत्वपूर्ण है। फोलिक एसिड: फोलिक एसिड हमारे शरीर में लाल रक्त कणों को
परिपक्व करने के लिए एवं रक्त में होमोसिस्टीन नामक रसायन की मात्रा कम
करने के लिए जरूरी है।
होमोसिस्टीन की रक्त में मात्रा ज्यादा होने से न केवल रक्तचाप बढ़ जाता है अपितु हृदय रोग की भी संभावना बढ़ जाती है।
क्लोरोफिल -
यह
मानव रक्त से बहुत मिलता-जुलता है। इसमें और मानव रक्त में केवल एक फर्क
होता है, वह है क्लोरोफिल के केंद्र में मैग्नीशियम कण होता है तो हीम रिंग
में लौह कण। शरीर को क्लोरोफिल को रक्त में बदलने के लिए केवल एक रासायनिक
क्रिया करनी पड़ती है, मैग्नीशियम कण को निकालकर उसकी जगह लौह कण को डालना
होता है और निकाले हुए मैग्नीशियम को शरीर की हड्डियों की मजबूती तथा
रक्तचाप(ब्लडप्रेशर) को नियमित (सामान्य) करने के लिए इस्तेमाल में लाया
जाता है।
क्लोरोफिल केवल रक्त ही नहीं बनाता अपितु यह एक अति
प्रभावी ऐन्टीबायोटिक के रूप में भी कार्य करता है। इससे शरीर कीटाणुओं के
संक्रमण से बचा रहता है। गेहूं के जवारों में मौजूद केल्शियम शरीर की
हड्डियों एवं दांतों की मजबूती एवं स्वास्थ्य हेतु सामान्य रासायनिक क्रिया
के लिए अति लाभप्रद है। इनमें मौजूद मेग्नीशियम रक्तचाप को सामान्य करने
के लिए अति आवश्यक है।
फ्री रेडिकल -
ये
अत्यंत क्रियाशील इलेक्ट्राॅन होते हैं, जो हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं
में रासायनिक क्रियाओं के उपरांत उत्पन्न होते हैं। चूंकि ये इलेक्ट्राॅन
असंतृप्त होते हैं, अपने को संतृप्त करने के लिए ये कोशिकाभित्ति से
इलेक्ट्राॅन लेकर संतृप्त हो जाते हैं, परंतु कोशिकाभित्ति में असंतृप्त
इलेक्ट्राॅन छोड़ जाते हैं। यही असंतृप्त इलेक्ट्राॅन फिर इलेक्ट्राॅन लेकर
संतृप्त हो जाते हैं और इस प्रकार से बार बार नये असंतृप्त
इलेक्ट्राॅन/फ्री रेडिकल उत्पन्न होते हैं और नष्ट होते रहते हैं। अगर इन
फ्री रेडिकलों को संतृप्त करने के लिए समुि चत मात्रा में Anti oxident नही
मिलते तो कोशिकाभित्ति क्षतिग्रस्त हो जाती है।
यही क्रिया
बार-बार होते रहने से कोशिका समूह क्षतिग्रस्त हो जाता है और मनुष्य एक या
अनेक रोगों का शिकार हो जाता है। यही एक महत्वपूर्ण कारण माना जा रहा है
आजकल की लाइफस्टाइल बीमारियों मधुमेह, हृदय रोग, रक्तचाप, गठिया, गुर्दे और
आंखों के काले या सफेद मोतिया रोग इत्यादि का। गेहूं के जवारे इन्हीं फ्री
रेडिकलों को नष्ट करने में शरीर की हर संभव सहायता करते हैं। आज अगर
प्रकृति में सभी शाकाहारी जानवरों के आहार पर गौर करें तो पाएंगे कि दूब
घास उन्हें आहार से होने वाले सभी रोगों से मुक्त रखती है।
कुत्ता
एक मांसाहारी जानवर होते हुए भी जब बीमार होता है तो प्रकृतिवश भोजन छोड़कर
केवल दूब घास खाकर कुछ दिनों में अपने आप को ठीक कर लेता है। मनुष्य साठ की
आयु पर पहुंचते ही काम से रिटायर कर दिया जाता है। इसका कारण उसकी बुद्धि
तथा याददाश्त कम होना माना जाता है परंतु हथिनी जिसकी आयु मनुष्य के ही
बराबर आंकी गयी है, उसकी न तो याददाश्त कम होती है, न ही उसे सफेद या काला
मोतिया होता है और न ही उसे 3900-6000 किलोग्राम भार के बावजूद आथ्र्राइटिस
(गठिया) रोग होता है।
अल्सरेटिव कोलाइटिस -
अलसर रोगी द्वारा जवारों का नियमित प्रयोग करने से दवाओं की मात्रा कम करने के साथ-साथ रोग के लक्षणों में भी कमी आई। यह बात जानने योग्य है कि इन रोगियों में इस बीमारी से आंत के कैंसर का खतरा 50 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। जवारों से उसका खतरा भी कम हो जाता है। सभी कैंसर रोगों में इन जवारों का उपयोग बहुत लाभकारी है।
जवारे तैयार करने की विधि -
लगभग
100 ग्राम अच्छी गुणवत्ता वाले गेहूं को साफ पानी से धोकर, फिर भिगोकर 8
से 10 घंटे रख दें । तत्पश्चात इन्हें 1 फुट ग् 1 फुट की क्यारियों या
गमलों में बो दें। यह काम रोजाना सात दिनों तक करें। सातवें दिन पहले
गमले/क्यारी मे गेहूं या जौ के जवारे करीब 8-9 इंच तक लंबे हो जाएंगे।
अब उन्हें मिट्टी से ऊपर-ऊपर काट लें, मिक्सी में डालकर साथ में कोई फल
जैसे केला, अनानास या टमाटर डालकर मिक्सी को चला लें । फिर इस हरे रस को
चाय की छन्नी से छान कर कांच के गिलास में डालकर आधे घंटे के अंदर सेवन
करें। आधे घंटे के पश्चात जवारों के रस से मिलने वाले पोषक तत्वों में कमी आ
सकती है। जवारों को काटने के बाद जडों को मिट्टी से उखाड़ कर फेंक दें और
नई मिट्टी डालकर नये गेहूं बो दें। काटने के बाद जो जवारे दोबारा उग आते
हैं उनसे शरीर को कोई लाभ नहीं मिलता है।
मसूड़ों की सूजन हो एवं खून आता हो तो जवारों को चबा चबा कर खाने से यह रोग केवल एक महीने में ही काफूर हो जाता है।
लू लगने पर -
लू
लगने पर भी जवारों के रस का सेवन बहुत लाभ पहुचाता है। किसे गेहूं के
जवारे न दें: बच्चों को एवं उन लोगों को जिन्हें दस्त हो रहे हों, मितली हो
रही हो और आमाशय में तेजाब बनता हो। जिन लोगों को गेहूं से एलर्जी हो, वे
जौ के जवारे इस्तेमाल कर सकते हैं।
गेहूं के जवारों, दूब घास आदि
के नियमित प्रयोग से अन्य फायदे शरीर की प्रतिरोध क्षमता बढ़ जाती है।
हिमोग्लोबिन द्वारा आॅक्सीजन ले जाए जाने की मात्रा बढ़ जाती है। जिन लोगों
का रात की पार्टी में शराब या नशे के पदार्थों के सेवन से सुबह सिर भारी
रहता है, उनको भला चंगा करने के लिए 1 कप जवारों का सेवन कुछ घंटे में जादू
का सा असर करता है। कब्ज को दूर करते हैं और कब्ज के कारण होने वाले रोगों
जैसे बवासीर, एनल फिशर एवं हर्नियां से बचाते हैं। बढ़े हुए रक्तचाप को कम
करते हैं। कैंसर के रोगी का कैंसर प्रसार कम करने में सहायता मिलती है।
साथ
ही कैंसर उपचार हेतु दवाओं के दुष्प्रभाव भी बहुत हद तक कम होते हैं।
ऐनीमिया (अल्परक्तता) के रोगी का हिमोग्लोबिन बढ़ जाता है। थेलेसिमिया नामक
बीमारी में बिना खून की बोतल चढ़ाए, हिमोग्लोबीन बढ़ जाता है। भूरे/सफेद हो
गए बाल पुनः काले होने लगते हैं। गठिया (ओस्टियोआथ्र्राइटिस) के रोगी बढ़ते
ही जा रहे हैं। वे इन घास/जवारों से अप्रत्याशित लाभ पाते हैं। अगर इसके
सेवन के साथ-साथ वे संतुलित, जीवित आहार करें, फास्ट फूड से बचें तथा
नियमित योगाभ्यास करें तो बहुत लाभ होगा।
बेहोश व्यक्ति का होश में आना -
यह
व्यक्ति उच्च रक्तचाप के कारण दिमाग की रक्त धमनी से रक्त निकलने से बेहोश
हो गया था। पूरा बेहोश होने के कारण उसके पोषण हेतु राईल्स नली डालकर घर
भेज दिया गया था। उसे दो सप्ताह तक पानी और दूब घास के सेवन से होश आ गया
और उसके बाद जीवित शाकाहारी आहार से अब पूर्णतः ठीक है। मधुमेह रोगी को
1989 से मधुमेह है।
अब उन्हें पिछले 4-5 वर्ष से घुटनों में दर्द
भी रहना शुरु हो गया था। कारण बताया गया कि ओस्टियोआथ्र्राइटिस हो गया है।
रोजमर्रा के घर के कार्य करने में भी परेशानी महसूस होती थी। मेरे कहने पर
उन्होंने गेहूं के जवारों को उगाया और जब ये जवारे 8-9 इंच लंबे हो गये तब
उन्हें काट कर पीना शुरु किया। साथ में उन्हें पैरों की उंगलियां में
सुन्नपन और पिंडलियों में दर्द रहने लगा था। उन्होंने न्यूरोबियोन के 10
इन्जेक्शन लगवाए पर कोई आराम नहीं हुआ। तब उन्होंने गेहूं के जवारे 20 दिन
लिये। फिर अगले महीने 20 दिन इन जवारों का रस लिया। बाद में घर में
व्यस्तता के कारण जवारों का रस पीना छोड़ दिया। उन्होंने इन्हीं दिनों अलसी
के कच्चे बीज भी 15-20 ग्राम रोज खाने शुरु कर दिये।
अब मधुमेह
काबू में रहता है, घुटने के दर्द में बहुत आराम हुआ और जो उंगलियां सुन्न
पड़ गई थी उनमें, साथ ही पिंडलियों के दर्द में भी बहुत आराम आ गया है। सबसे
महत्वपूर्ण बात है कि उन्हें जो एक प्रकार का अवसाद रहने लगा था, लगभग
खत्म हो गया है।
मोटापा -
आज
से करीब 7 महीने पहले जब एक सज्जन मेरे पास आए तो उनका वजन 114 किग्रा.
था। उन्होंने मेरे कहने पर पका हुआ भोजन बंद कर अंकुरित अनाज, दाल, फल,
सलाद एवं दूब घास खाना शुरु कर दिया। शुरु के पहले माह ये सब भोजन खाने में
बहुत कष्ट होता था, अपने आपको बहुत काबू में रखना पड़ता था, परंतु जैसे ही
पहला महीना गुज़रा उनका वजन 4 कि.ग्रा. कम हो गया।
अब उन्हें कच्चे,
अपक्व भोजन एवं दूब घास के सेवन में बहुत आनंद आने लगा। दूसरे माह में
करीब 7 कि.ग्रावजन कम हो गया। शरीर में इतनी ताकत बढ़ गयी कि जहां 50 कदम
चलने से ही सांस फूलने लगता था, रक्तचाप बढ़ा रहता था, अब दोनों में आराम आ
गया। अब भी प्रति माह 2 कि. ग्रा. वजन नियमित रूप से कम होता जा रहा है।
उनके
पूरे परिवार ने अंकुरित कच्चे अनाज एवं फल, सलाद आदि को नियमित भोजन बना
लिया है। वेरिकोज़ वेन्ज से उत्पन्न घाव: एक रोगी को रक्त धमनियों के रोग
वेरिकोज़ वेन्ज के कारण न भरने वाला घाव बन गया था। तीन महीने घास के रस को
पीने तथा जवारे के रस की पट्टी से हमेशा के लिए ठीक हो गया।
एक
सज्जन को कोई 10-12 वर्ष से सोरियासिस नामक चर्म रोग था। उन्होंने मेरे
आग्रह पर गेहूं के जवारे खाना तथा जवारों का लेप शुरु कर दिया। पहले महीने
में त्वचा के चकत्ते खून आना तथा खुजली बंद हो गई। दूसरे माह में ये सभी
सूखने शुरु हो गये, साथ ही चकत्तों की परिधि की त्वचा मुलायम होनी शुरु हो
गई। इन्होंने प्रेडनीसोलोन नामक दवा खानी बंद कर दी। 4 महीनों में इनकी
त्वचा सामान्य हो गयी।
चेहरे पर झाइयां हो जाती हों या आंखों के
नीचे काले गड्ढे पड़ जाते हों तो इन दोनों ही चर्म रोगों में जवारों का रस
पीने के साथ-साथ लेप करने से 3 महीने में अप्रत्याशित लाभ मिलता है। बुखार:
एक बच्चा जिसे बार-बार हर महीने बुखार हो जाता था, कई बार एक्सरे कराने
एवं रक्त की जांच कराने पर कुछ दोष पता नहीं चलता था। दूब घास के रस को तीन
महीने पीने के बाद कभी बुखार नहीं हुआ। जुकाम एवं साइनस: एक रोगी को
प्रतिदिन छींक आती रहती थी, जुकाम रहता था तथा साइनस का शिकार हो गया था।
जवारों
के 6 माह तक नियमित सेवन से रोग खत्म हो गया। इन्फेक्शन से गले की आवाज
बैठ गई हो तो भी जवारों का रस या दूब के रस के सेवन से पांच दिनों में पूरा
आराम मिलता है।
माइग्रेन (आधे सिर का दर्द) -
माइग्रेन
के कुछ रोगियों को पहले ही दिन में तीन बार जवारों का रस पीने से 50
प्रतिशत तक लाभ हो जाता है। शारीरिक कमजोरी: एक साहब को रक्तचाप बढ़ जाने से
रक्तस्राव होकर अधरंग हो गया था। दवाइयां खाने से अधरंग और रक्तचाप पर तो
काबू आ गया परंतु उनका वजन काफी कम हो गया और बहुत शारीरिक कमजोरी हो गई।
उन्होंने शिमला में किसी सज्जन की सलाह पर गेहूं के जवारे लेने शुरु कर
दिए। 3 माह के अंदर पूरा कायाकल्प हो गया। कमजोरी का नामोनिशान नहीं रहा।
जवारे का रस के बनाने की विधि-
आप
सात बांस की टोकरी मे अथवा गमलों मे मिट्टी भरकर उन मे प्रति दिन
बारी-बारी से कुछ उत्तम गेहूँ के दाने बो दीजिए और छाया मे अथवा कमरे या
बरामदे मे रखकर यदाकदा थोड़ा-थोड़ा पानी डालते जाइये, धूप न लगे तो अच्छा
है। तीन-चार दिन बाद गेहूँ उग आयेंगे और आठ-दस दिन के बाद 6-8 इंच के हो
जायेंगे। तब आप उसमें से पहले दिन के बोए हुए 30-40 पेड़ जड़ सहित उखाड़कर
जड़ को काटकर फेंक दीजिए और बचे हुए डंठल और पत्तियों को धोकर साफ सिल पर
थोड़े पानी के साथ पीसकर छानकर आधे गिलास के लगभग रस तैयार कीजिए ।
वह
ताजा रस रोगी को रोज सवेरे पिला दीजिये। इसी प्रकार शाम को भी ताजा रस
तैयार करके पिलाइये आप देखेंगे कि भयंकर रोग दस बीस दिन के बाद भागने लगेगे
और दो-तीन महीने मंे वह मरण प्रायः प्राणी एकदम रोग मुक्त होकर पहले के
समान हट्टा-कट्ठा स्वस्थ मनुष्य हो जायेगा। रस छानने में जो फूजला निकले
उसे भी नमक वगैरह डालकर भोजन के साथ रोगी को खिलाएं तो बहुत अच्छा है। रस
निकालने के झंझट से बचना चाहें तो आप उन पौधों को चाकू से महीन-महीन काटकर
भोजन के साथ सलाद की तरह भी सेवन कर सकते हैं परन्तु उसके साथ कोई फल न
खाइये। आप देखेंगे कि इस ईश्वरप्रदत्त अमृत के सामने सब दवाइयां बेकार हो
जायेगी।
गेहूँ के पौधे 6-8 इंच से ज्यादा बड़े न होने पायें, तभी
उन्हें काम मे लिया जाय। इसी कारण गमले में या चीड़ के बक्स रखकर
बारी-बारी आपको गेहूँ के दाने बोने पड़ेंगे। जैसे-जैसे गमले खाली होते जाएं
वैसे-वैसे उनमें गेहूँ बोते चले जाइये। इस प्रकार यह जवारा घर में प्रायः
बारहों मास उगाया जा सकता है।
गेहूं के जवारे के प्रयोग के दौरान आवश्यक सावधानियाँ -
- रस निकाल कर ज्यादा देर नहीं रखना चाहिए।
-
रस ताजा ही सेवन कर लेना चाहिए। घण्टा दो घण्टा रख छोड़ने से उसकी शक्ति
घट जाती है और तीन-चार घण्टे बाद तो वह बिल्कुल व्यर्थ हो जाता है।
- ग्रीन ग्रास एक-दो दिन हिफाजत से रक्खी जाएं तो विशेष हानि नहीं पहुँचती है।
- रस लेने के पूर्व व बाद मे एक घण्टे तक कोई अन्य आहार न लें
- गमलों में रासायनिक खाद नहीं डाले।
- रस में अदरक अथवा खाने के पान मिला सकते हैं इससे उसके स्वाद तथा गुण में वृद्धि हो जाती है।
- रस में नींबू अथवा नमक नहीं मिलाना चाहिए।
- रस धीरे-धीरे पीना चाहिए।
- इसका सेवन करते समय सादा भोजन ही लेना चाहिए। तली हुई वस्तुएं नहीं खानी चाहिए।
-
तीन घण्टे मे जवारे के रस के पोषक गुण समाप्त हो जाते हैं। शुरु मे कइयों
को उल्टी होंगी और दस्त लगेंगे तथा सर्दी मालूम पड़ेगी। यह सब रोग होने की
निशानी है। सर्दीं, उल्टी या दस्त होने से शरीर में एकत्रित मल बाहर निकल
जायेगा, इससे घबराने की जरुरत नहीं है। स्वामी रामदेव ने इस रस के साथ नीम
गिलोय व तुलसी के 20 पत्तों का रस मिलाने की बात कहीं है।
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