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एक जंगल में पारिजात नाम का एक पेड़ था। पारिजात का कोई मुकाबला नहीं था। उसकी सुंदरता बेजोड़ थी। उसका रंग रूप निराला था। उसकी सुगंध बहुत प्यारी थी। वैसे जंगल में न जाने कितने पेड़ थे। कई पारिजात से ऊंचाई में बड़े थे। कई पेड़ पारिजात से ज्यादा ही सुन्दर थे। कई पेड़ अपने फूलों के सुहानेपन और कई पेड़ अपने पराग की सुगंध की मोहकता से पारिजात से ज्यादा अच्छे थे , लेकिन पारिजात में आकार , रूप , रंग , और गंध के गुण इतने सुन्दर रूप में मौजूद थे कि जंगल का कोई पेड़ पारिजात का मुक़ाबला नहीं कर सकता था। पारिजात को भी अपने गुणों का पूरा - पूरा पता था।
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नीले आकाश में सिर उठाये इस शान से खड़ा रहता, मानो पेड़ो का सरताज हो। जब बहार के दिन आते तो पारिजात अनगिनत नन्हे - नन्हे फूलों से लद जाता लगता मानो किसी ने आकाश से तारे तोड़कर पारिजात की शाखाओं पर टांक दिए हो। नन्हे फूलों से झिलमिलाता पारिजात जब सुगंध भरा पराग हवा में बिखेरता , तो जंगल नदी नंदन - वन बन जाता। चुम्बक की तरह पारिजात सबको अपनी तरफ खींचता। जिसे देखो , वंही पारिजात की तरफ भागता। सतरंगी शालें ओढ़े, चटकीली तितलियाँ सहेलियों के साथ झुण्ड - का - झुण्ड बनाकर पारिजात का श्रंगार देखने आतीं और जाते - जाते फूलों से छीनकर ढेरों पराग अपने साथ ले जातीं। गुनगुन करते काले भौंरें आते। फूलों पर मंडराते उनका रस चखते और चले जाते। भन - भन करती मधुमखियाँ दूर - दूर से आतीं। फूलों से मधु बटोरतीं और अपनी रानी के लिए शाही शहद बनाने अपने छत्तों की तरफ चल देतीं।
भोर के समय महोख पक्षी आता और पारिजात की फुनगी पर बैठकर प्रभाती सुना जाता। प्यासे पपीहे आते , हरे तोते आते , शर्मीली कोयल आती , कलंगीदार हुदहुद आते , रंग - बिरंगे मोर आते वे सभी पारिजात के वैभव की सराहना करते नहीं थकते। शाम को बुलबुल आती। चहकती , फुदकती और मीठे - मीठे गीत सुनाती। चाँद आता और चला जाता और चला जाता। सूरज उगता और डूब जाता। कभी चांदनी होती कभी अमावस। कभी धूप , कभी छांव। समय तेज़ी से भागता रहा। समय के साथ पारिजात का नाम भी बढ़ता रहा। जंगल में जहाँ देखो , पारिजात की ही बातें होतीं थीं। उसका सीधा - सपाट तना गर्व से छाती फुलाकर आकाश में खिंचा रहता। हज़ारों हाथों के समान हरी - भरी शाखाएँ हवा में झूम - झूमकर पास से आने - जाने वालों को बुलावा देतीं।
नन्हें - नन्हें फूल पत्तियों के आँचल से झाँकते और अपनी सुगंध फैलाकर उन्हें बुलाते। यह देखकर आसपास के पडोसी पेड़ो में पारिजात के प्रति ईर्ष्या जाग उठी ; जैसे - गरीब मोहल्ले के लोग अपने लखपति पडोसी से जलते हैं, वैसे ही सब पेड़ पारिजात से जलने लगे। कोई अपनी ऊंचाई की दुहाई देता और कहता कि मैं पारिजात से बड़ा हूँ - पारिजात मेरे सामने बौना है। सब अपनी - अपनी तारीफ करते रहते थे और अपने को पारिजात से बड़ा सिद्ध करने की कोशिश करते रहते थे। जलन की इन आँधियों के बीच चुपचाप खड़ा रहता बूढ़ा बरगद , अभी तक न जाने कितने वसंत और पतझड़ वह देख चुका है। जंगल की हर पुरानी याद के बीच बूढ़े बरगद की बात मिलती। आज के पेड़ों ने अपने दादा - दादी से बूढ़े बरगद की बातें सुनी। वह जंगल का पितामह था - सब में बुज़ुर्ग और सबमें बुद्धिमान तथा सबके आदर का पात्र। समय बीतता चला गया और पारिजात समय के साथ - साथ प्रसिद्द होने लगा वो इतना प्रसिद्द हो गया की उसको अपनी सुंदरता पे घमंड होने लगा।
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एक दिन बहुत तेज आंधी आयी सब पेड़ो ने अपना सर झुका लिया लेकिन पारिजात ने अपना सर टस से मस भी नहीं किया। अचानक से पारिजात टूट कर गिर गया और उसके सभी अंग बिखर गए। शाम होने के बाद सभी अंगो में जंग छिड़ गयी तने , फूल , शाखाएं , जड़ें , पत्तियां आपस में सब लड़ने लगे। तने ने कहा मेरी वजह से पारिजात की सुंदरता है। फूल ने कहा मेरी वजह से है। शाखाएं ने कहा। जड़ों ने कहा। पत्तियों ने कहा और यहाँ तक की फलों ने भी कहने में कुछ कसर नहीं छोड़ी। झगड़ने की आवाज़ बूढ़े बरगद के कानों में पड़ी। उसे पता चला की पारिजात के विभिन्न अंग आपस में अपनी शान , नाम और कीर्ति के लिए लड़ रहे है। पारिजात के सभी अंगो के असहयोग के कारण जड़ों ने रास भेजना बंद कर दिया जिससे तना ढीला पड़ने लगा शाखाएं झुकने लगी और फूल मुरझाने लगे। अचानक बूढ़े बरगद के कानों में ये आवाज़ पड़ी और उसे पता चला की पारिजात के सभी अंग अपनी शान , नाम और कीर्ति के लिए लड़ रहे हैं। बूढ़े बरगद ने पारिजात को समझाया और एक सलाह दी की मिलकर काम करने से तुम जी पाओगे और नाम कमाओगे तथा सहयोग ही जीवन है और सहयोग ही ताकत है। अब सब बूढ़े बरगद की बात मान गए और अपना - अपना काम सही प्रकार से करने लगे और पहले की तरह पारिजात प्रसिद्ध हो गया
इस कहानी से हमे ये शिक्षा मिलती है की संगठन में ही शक्ति होती है ।
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