पाठ 1 भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? कक्षा 11 गद्य गरिमा, साहित्यिक हिंदी UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 1

पाठ 1- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? कक्षा 11 साहित्यिक हिंदी UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 1

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Bharatvarsh Unnati Kaise Ho Sakti Hai लेखक का साहित्यिक परिचय और भाषा-शैली


Bharatvarsh Unnati Kaise Ho Sakti Hai Question Answer प्रश्न 1.
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
या
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का साहित्यिक परिचय दीजिए।
या
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन-परिचय और रचनाएँ लिखते हुए उनकी भाषा-शैली की विशेषताएँ भी बताइए।
उत्तर:

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी का जीवन-परिचय -

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र खड़ी बोली हिन्दी गद्य के जनक माने जाते हैं। इन्होंने हिन्दी गद्य-साहित्य को नवचेतना और नयी दिशा प्रदान की। इनका जन्म काशी के एक सम्पन्न और प्रसिद्ध वैश्य परिवार में सन् 1850 ई० में हुआ था। इनके पिता गोपालचन्द्र, काशी के सुप्रसिद्ध सेठ थे जो ‘गिरिधरदास’ उपनाम से ब्रज भाषा में कविता किया करते थे। भारतेन्दु जी में काव्य-प्रतिभा बचपन से ही विद्यमान थी। इन्होंने पाँच वर्ष की आयु में निम्नलिखित दोहा रचकर अपने पिता को सुनाया और उनसे सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया

लै ब्योढा ठाढे भये, श्री अनिरुद्ध सुजान।
बाणासुर की सैन को, हनन लगे भगवान ॥

पाँच वर्ष की आयु में माता के वात्सल्य तथा दस वर्ष की आयु में पिता के प्यार से वंचित होने वाले भारतेन्दु की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने घर पर ही हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, बँगला आदि भाषाओं का अध्ययन किया। तेरह वर्ष की अल्पायु में मन्नो देवी नामक युवती के साथ इनका विवाह हो गया। भारतेन्दु जी यात्रा के बड़े शौकीन थे। इन्हें जब भी समय मिलता, ये यात्रा के लिए निकल जाते थे। ये बड़े उदार और दानी पुरुष थे। अपनी उदारता और दानशीलता के कारण इनकी आर्थिक दशा शोचनीय हो गयी और ये ऋणग्रस्त हो गये।  परिणामस्वरूप श्रेष्ठि-परिवार में उत्पन्न हुआ यह महान् साहित्यकार ऋणग्रस्त होने के कारण, क्षयरोग से पीड़ित हो 35 वर्ष की अल्पायु में ही सन् 1885 ई० में दिवंगत हो गया।साहित्यिक सेवाएँ: प्राचीनता के पोषक और नवीनता के उन्नायक, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हिन्दी खड़ी बोली के ऐसे साहित्यकार हुए हैं, जिन्होंने साहित्य के विभिन्न अंगों पर साहित्य-रचना करके हिन्दी-साहित्य को समृद्ध बनाया। इन्होंने कवि, नाटककार, इतिहासकार, निबन्धकार, कहानीकार और सम्पादक के रूप में हिन्दी-साहित्य की महान् सेवा की है। नाटकों के क्षेत्र में इनकी देन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।

भारतेन्दु जी से पूर्व खड़ी बोली गद्य के क्षेत्र में अलग-अलग दो शैलियाँ प्रचलित थीं। एक शैली में अरबी-फारसी के शब्दों की अधिकता थी तो दूसरी में संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता। भारतेन्दु जी ने इन शैलियों के मध्य मार्ग का अनुसरण करके हिन्दी गद्य को ऐसा व्यवस्थित स्वरूप दिया, जिसमें व्यावहारिक उर्दू  और फारसी के शब्दों के साथ-साथ प्रचलित संस्कृत और अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग था।


भारतेन्दु जी ने हिन्दी भाषा के प्रचार के लिए आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन को गति देने के लिए इन्होंने नयी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन एवं सम्पादन किया, साहित्यिक संस्थाओं की स्थापना की और हिन्दी लेखकों को साहित्य-सृजन के लिए प्रेरित किया। इन्होंने साहित्य-सेवी संस्थाओं तथा साहित्यकारों को धन दिया और देश में अनेक शिक्षा संस्थाओं, पुस्तकालयों एवं नाट्यशालाओं की स्थापना की।

भारतेन्दु जी की साहित्य-

रचना का काल भारत की परतन्त्रता का युग था।उस समय देश की सामाजिक और राजनीतिक दशा अत्यन्त दयनीय वे शोचनीय थी। इसलिए इन्होंने अपने साहित्य में समाज और देश की दयनीय स्थिति का चित्रण करके, देश की प्रगति के लिए लोगों का आह्वान किया। इनके नाटकों में समाज-सुधार, देशप्रेम, राष्ट्रीय चेतना और देशोद्धार के स्वर मुखरित हुए हैं।

भारतेन्दु जी ने साहित्य के विभिन्न अंगों अर्थात् विविध विधाओं की पूर्ति की। इन्होंने हिन्दी गद्य के क्षेत्र में नवयुग का सूत्रपात किया और नाटक, निबन्ध, कहानी, इतिहास आदि विषयों पर साहित्य-रचना की। अपने निबन्धों में इन्होंने तत्कालीन सामाजिक, साहित्यिक और राजनीतिक परिस्थितियों का चित्रण किया। इतिहास, पुराण, धर्म, भाषा आदि के अतिरिक्त इन्होंने संगीत आदि पर निबन्ध-रचना की तथा सामाजिक रूढ़ियों पर व्यंग्य भी किये। काव्य के क्षेत्र में भारतेन्दु जी ने कविता को राष्ट्रीयता की ओर मोड़ा। इनके काव्य की मुख्य भाषा ब्रज भाषा और गद्य की प्रमुख भाषा खड़ी बोली थी।

भारतेन्दु जी ने एक यशस्वी सम्पादक के रूप में कवि वचन सुधा’ (1868 ई०) और ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन (1873 ई०) पत्रिकाओं का सम्पादन किया, जिससे हिन्दी गद्य के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ। आठ अंकों के उपरान्त ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ का नाम बदलकर ‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका हो गया। इस प्रकार भारतेन्दु जी ने व्यावहारिक हिन्दी भाषा को अपनाकर, विविध विषयों पर स्वयं निबन्ध लिखकर और अन्य लेखकों को लिखने के लिए प्रेरित करके हिन्दी साहित्य की महान् सेवा की और एक नये युग का सूत्रपात किया।

 कृतियाँ:
भारतेन्दु जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इन्होंने नाटक, काव्य, निबन्ध, उपन्यास, कहानी आदि साहित्य की तत्कालीन प्रचलित सभी विधाओं में महत्त्वपूर्ण रचनाएँ कीं, किन्तु नाटकों के क्षेत्र में इनकी देन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इनकी कृतियों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है

नाटक:
भारतेन्दु जी ने मौलिक और अनूदित दोनों प्रकार के नाटकों की रचना की है, जिनकी कुल संख्या 17 है:
(1) मौलिक नाटक: सत्य हरिश्चन्द्र, श्री चन्द्रावली, नीलदेवी, भारत दुर्दशा, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, सती प्रताप, अँधेर नगरी, विषस्य विषमौषधम् तथा प्रेम-जोगिनी।
(2) अनूदित नाटक:  मुद्राराक्षस, रत्नावली नाटिका, कर्पूरमंजरी, विद्यासुन्दर, पाखण्ड विडम्बन, धनंजय विजय, भारत जननी तथा दुर्लभ बन्धु।।

निबन्ध-संग्रह:
सुलोचना, मदालसा, लीलावती, दिल्ली दरबार दर्पण एवं परिहास-वंचक।

इतिहास:
अग्रवालों की उत्पत्ति, महाराष्ट्र देश का इतिहास तथा कश्मीर कुसुम।

कविता-संग्रह:
भक्त सर्वस्व, प्रेम सरोवर, प्रेम तरंग, सतसई सिंगार, प्रेम प्रलाप, प्रेम फुलवारी, भारत-वीणा आदि।

यात्रा वृत्तान्त:
सरयू पार की यात्री, लखनऊ की यात्री आदि।

जीवनी:
सूरदास, जयदेव, महात्मा मुहम्मद आदि।

भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है Summary भाषा और शैली

(अ) भाषागत विशेषताएँ

भाषा के समन्वित रूप का प्रयोग:
भाषा समूची युग-चेतना की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। यही कारण है कि भारतेन्दु जी ने काव्य में परम्परागत ब्रज भाषा का प्रयोग किया, परन्तु गद्य के लिए इन्होंने खड़ी बोली को ही अपनाया। भारतेन्दु जी से पूर्व हिन्दी गद्य का कोई निश्चित स्वरूप नहीं था तथा गद्य के लिए दो प्रकार की भाषा का प्रयोग हो रहा था। एक ओर उर्दू-फारसी मिश्रित खड़ी बोली का प्रयोग तो दूसरी ओर संस्कृत की तत्सम शब्दावली से युक्त खड़ी बोली। भारतेन्दु जी ने दोनों प्रकार की भाषा को समन्वित प्रयोग कर भाषा को सरल और व्यावहारिक रूप प्रदान किया। इन्होंने अरबी, फारसी और अंग्रेजी के शब्दों के साथ-साथ, संस्कृत के तत्सम शब्दों, साधारण प्रयोग में आने वाले तद्भव और देशी शब्दों का प्रयोग करके खड़ी बोली हिन्दी का स्वरूप प्रतिष्ठित किया। इनकी इस भाषा को समकालीन लेखकों ने सहर्ष स्वीकार भी किया।

लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग -

भाषा को सजीव रूप प्रदान करने और उसमें प्रवाह एवं ओज उत्पन्न करने के लिए इन्होंने सुन्दर लोकोक्तियों और मुहावरों का सटीक प्रयोग किया। यद्यपि भारतेन्दु जी की भाषा में व्याकरण की दृष्टि से कतिपय दोष दिखाई देते हैं; क्योंकि इनके युग में खड़ी बोली का व्याकरण-सम्मत निश्चित स्वरूप नहीं था; तथापि इनकी भाषा सरल, सुबोध, सुमधुर, व्यावहारिक, भावानुगामिनी एवं सशक्त है।

(ब) शैलीगत विशेषताएँ:

भाव और विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा और अभिव्यक्ति का ढंग शैली कहलाती है। भारतेन्दु जी की रचनाओं में हमें विषयानुरूप शैली के अनेक रूप दिखाई देते हैं। ये अपनी शैली के स्वयं निर्माता थे। इनकी शैली पर इनके मस्त और उदार व्यक्तित्व की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। इनकी शैली के प्रमुख रूप निम्नलिखित हैं

(1) वर्णनात्मक शैली:

किसी वस्तु का वर्णन करते समय अथवा परिचय देते समय भारतेन्दु जी ने वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है। इस शैली में वर्णन की प्रधानता होती है। इसमें भारतेन्दु जी ने सरल और सुबोध भाषा का प्रयोग किया है। इस शैली में वाक्य छोटे और व्यवस्थित हैं।

(2) भावात्मक शैली:

भाषा के वेग और तीव्रता को प्रकट करने के लिए भारतेन्दु जी ने भावात्मक शैली को अपनाया है। इसमें वाक्य छोटे और गठे हुए हैं। इस शैली में प्रवाह, ओज तथा कोमल शब्दावली के प्रयोग से विशेष माधुर्य आ गया है।

(3) विवेचनात्मक शैली:

साहित्य, इतिहास, राजनीति आदि विषयों पर लिखते समय भारतेन्दु जी उनका गम्भीर विवेचन भी करते चलते हैं। इस शैली में इनकी भाषा तत्सम शब्दों से युक्त, गम्भीर और प्रौढ़ है।

(4) हास्य-व्यंग्यात्मक शैली:

भारतेन्दु जी ने सामाजिक कुरीतियों, पाखण्डों तथा अंग्रेजी शासकों पर अत्यन्त तीखे व्यंग्य किये हैं। इस शैली में सजीवता और चुटीलापन है।।

(5) गवेषणात्मक शैली:

भारतेन्दु जी ने इस शैली का प्रयोग ऐतिहासिक और साहित्यिक निबन्धों में किया है। इसमें इन्होंने नये-नये तथ्यों की खोज की है। साहित्यिक निबन्धों में शैली का प्रयोग करते समय संस्कृत के तत्सम शब्दों का तथा कुछ बड़े-बड़े वाक्यों का प्रयोग किया गया है।

(6) विवरणात्मक शैली:

जहाँ पर गति के साथ किसी विषय के वर्णन की आवश्यकता महसूस हुई है, वहाँ पर भारतेन्दु जी ने इस शैली का प्रयोग किया है। सरयूपार की यात्रा’, ‘लखनऊ की यात्रा’ आदि यात्रा-वृत्तान्त इस शैली के श्रेष्ठ उदाहरण हैं।

(7) विचारात्मक शैली:

भारतेन्दु जी ने गम्भीर विषयों के विवेचन में इस शैली का सुन्दर प्रयोग किया है। ‘वैष्णवता और भारतवर्ष’, ‘भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?’ इत्यादि निबन्ध इनकी इस शैली के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। उपर्युक्त शैलियों के अतिरिक्त भारतेन्दु जी ने स्तोत्र शैली, प्रदर्शन शैली, शोध शैली, कथा शैली और भाषण शैली को भी बड़ी कुशलता के साथ अपनाया है।

साहित्य में स्थान:

नि:स्न्देह हिन्दी-साहित्याकाश के प्रभामण्डित इन्दु भारतेन्दु जी हिन्दी गद्य-साहित्य के जन्मदाता थे। आज भी साहित्य का यह इन्दु अपनी रचना-सम्पदा के माध्यम से हिन्दी-साहित्य गगन से अमृत-वृष्टि कर रहा है।

Bharatvarshonnati Kaise Ho Sakti Hai गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर


भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है Pdf प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांशों के आधार पर उनसे सम्बन्धित दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है पाठ का सारांश प्रश्न 1

इस अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाय वही बहुत है। हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं। यद्यपि फर्स्ट क्लास सेकेण्ड क्लास आदि गाड़ी बहुत अच्छी-अच्छी और बड़े महसूल की इस ट्रेन में लगी हैं पर बिना इंजिन सब नहीं चल सकतीं, वैसे ही हिन्दुस्तानी लोगों को कोई चलाने वाला हो तो ये क्या नहीं कर सकते। इनसे इतना कह दीजिए “का चुप साधि रहा बलवाना’ फिर देखिए हनुमान जी को अपना बल कैसा याद आता है। सो बल कौन याद दिलावै।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और उसके लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्याकीजिए।
(iii) लेखक ने देश के लोगों को किसकी संज्ञा दी है? कारण सहित उत्तर दीजिए।
(iv) “का चुप साधि रही बलवाना” इस लोकोक्ति के माध्यम से लेखक किस बात को स्पष्ट करना चाहता है?
(v) प्रस्तुत गद्यांश का आशय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
(i) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ के ‘भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?’
शीर्षक निबन्ध से अवतरित है। इसके लेखक हिन्दी साहित्य के जनक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हैं।
अथवा निम्नवत् लिखिए
पाठ का नाम – भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?
लेखक का नाम – भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।
[संकेत–इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए प्रश्न (i) का यही उत्तर लिखना है।]

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: भारतेन्दु जी कहते हैं कि यह देश का बड़ा दुर्भाग्य है कि भारतवासियों में विविध प्रकार से गुणी तथा सभी प्रकार की योग्यता रखने वाले लोग हैं, परन्तु वे सही नेतृत्व के अभाव में अभी तक अपनी उन्नति नहीं कर सके हैं। हमारे देश के लोगों को  लगाड़ी की संज्ञा दी जा सकती है। जैसे रेलगाड़ी में ऊँचे किराये तथा सामान्य किराये के डिब्बे लगे रहते हैं, परन्तु इंजन के अभाव में वे सभी अपनी जगह स्थिर रहते हैं, आगे नहीं बढ़ पाते; उसी प्रकार भारत के लोगों में भी उच्च और मध्यम श्रेणी के विद्वान्, वीर एवं शक्ति-सम्पन्न सभी प्रकार की प्रतिभाओं से सम्पन्न लोग हैं, परन्तु नेतृत्वहीनता के कारण वे अपनी उन्नति के लिए स्वयं कोई भी कार्य नहीं कर पाते। यदि भारतीयों को सही मार्गदर्शक की सत्प्रेरणा प्राप्त हो जो उन्हें उनके बल, पौरुष और ज्ञान का स्मरण दिला सके, तो वे कठिन-से-कठिन और बड़े-से-बड़े कार्य को भी आसानी से कर सकते हैं। मात्र एक नेता के अभाव में उसकी सारी शक्ति, ज्ञान और योग्यता व्यर्थ हो जाती है।

(iii) लेखक ने देश के लोगों को रेलगाड़ी की संज्ञा दी है क्योंकि जिस प्रकार से रेलगाड़ी में ऊँचे किराए तथा सामान्य किराए के डिब्बे लगे रहते हैं किन्तु सभी इंजन के अभाव में अपनी जगह स्थिर रहते हैं उसी प्रकार देश के लोगों की स्थिति है। वे भी नेतृत्वहीनता के कारण उन्नति नहीं कर सकते।

(iv) “का चुप साधि रहा बलवाना” लोकोक्ति के माध्यम से लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि देश के लोग हनुमान जी की तरह हैं। जामवंत ने जिस प्रकार हनुमान जी को उनकी शक्ति का स्मरण कराया और वे समुद्र लाँघ गए, उसी प्रकार भारत के लोगों को प्रेरणादायी, सफल नेतृत्व की आवश्यकता है।

(v) उपर्युक्त गद्यांश का आशय यह है हमारे देश के लोग प्रतिभावान एवं सभी प्रकार की योग्यता रखने वाले हैं, किन्तु उन्हें वे अपनी प्रतिभा से अनभिज्ञ हैं। यदि उनको कोई सही मार्गदर्शक मिल जाए तो वे क्या नहीं कर सकते! अर्थात् वे सब कुछ कर सकते हैं। प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक देशवासियों को स्वावलम्बी बनने की प्रेरणा प्रदान करता है।

भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है प्रश्न 2

यह समय ऐसा है कि उन्नति की मानो घुड़दौड़ हो रही है। अमेरिकन अँगरेज फरासीस आदि तुरकी ताजी सब सरपट्ट दौड़े जाते हैं। सबके जी में यही है कि पाला हमी पहले छू लें। उस समय हिन्दू
काठियावाड़ी खाली खड़े-खड़े टाप से मिट्टी खोदते हैं। इनको औरों को जाने दीजिए जापानी टट्टुओं । को हाँफते हुए दौड़ते देख करके भी लाज नहीं आती। यह समय ऐसा है कि जो पीछे रह जाएगा फिर कोटि उपाय किए भी आगे न बढ़ सकेगा। इस लूट में इस बरसात में भी जिसके सिर पर कम्बख्ती का छाता और आँखों में मूर्खता की पट्टी बँधी रहे उन पर ईश्वर को कोप ही कहना चाहिए।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और उसके लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) लेखक ने कहाँ के निवासियों को जापानी टट्टुओं की संज्ञा दी है?
(iv) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक ने भारतवासियों को क्या सुझाव दिया है?
(v) “उस समय हिन्दू काठियावाड़ी खाली खड़े-खड़े टाप से मिट्टी खोदते हैं।” इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने कौन-सी बात कही है?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: भारतेन्दु जी कहते हैं कि भारतवासियों को यह समझना चाहिए। कि ऐसे क्षणों में यदि वे एक बार पिछड़ जाएँगे तो फिर आगे नहीं बढ़ सकते। लेखक को मत है कि आधुनिक वैज्ञानिक युग में उन्नति के साधन इतनी सरलता से उपलब्ध हैं, जैसे वे अनायास प्राप्त वर्षा का जल हों। ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो लूट का माल बिखरा पड़ा हो और हमने आँखों पर पट्टी बाँध रखी हो अथवा वर्षा हो रही हो और हमने सिर पर छाता लगा रखा हो। तात्पर्य यह है कि भारतवर्ष के लोग आलस्य अथवा अज्ञानवश उन्नति के सुलभ साधनों का न तो उपयोग ही कर पा रहे हैं और न ही उन्हें उपलब्ध करा पा रहे हैं।

(iii) लेखक ने जापान के निवासियों को जापानी टट्टुओं की संज्ञा दी है क्योंकि वे अधिक शक्तिशाली नहीं होते, फिर भी अपनी उन्नति के लिए वे प्रयत्नशील हैं।
(iv) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से भारतेन्दु जी ने भारतवासियों को सुझाव दिया है कि जब छोटे-छोटे देश भी अपने विकास में संलग्न हैं तब भारतवर्ष को भी अपनी उन्नति का पूरा प्रयास करना चाहिए।

(v) “उस समय हिन्दू काठियावाड़ी खाली खड़े-खड़े टाप से मिट्टी खोदते हैं।” पंक्ति के माध्यम से भारतेन्दु जी भारतीयों की अकर्मण्यता और उदासीन-प्रवृत्ति से क्षुब्ध होकर कहते हैं कि संसार के सभी छोटे-बड़े देश उन्नति की दौड़ में निरन्तर आगे बढ़ते जा रहे हैं और हम भारतवासी अपने स्थान पर खड़े-खड़े पैरों से मिट्टी खोद रहे हैं। अमेरिकन, अंग्रेज, फ्रांसीसी आदि तुर्की घोड़ों की तरह तीव्र गति से प्रगति की दौड़ में एक-दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, किन्तु भारत के लोग निरन्तर पिछड़ते जा रहे हैं। इनका मानसिक और सामाजिक स्तर जो वर्षों पहले था, वही अब भी है। ये आज भी कुरीतियों और अन्धविश्वासों में जकड़े हुए हैं, इसीलिए स्वावलम्बी नहीं हैं।

Bharat Varsh Ki Unnati Kaise Ho Sakti Hai Question Answer प्रश्न 3

सब उन्नतियों का मूल धर्म है। इससे सब के पहले धर्म की ही उन्नति करनी उचित है। देखो! अंगरेजों की धर्मनीति राजनीति परस्पर मिली हैं इससे उनकी दिन-दिन कैसी उन्नति है। उनको जाने दो, अपने ही यहाँ देखो। तुम्हारे यहाँ धर्म की आड़ में नाना प्रकार की नीति समाज-गठन वैद्यक आदि भरे हुए हैं।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और उसके लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) लेखक ने सभी उन्नतियों का मूल किसे बताया है?
(iv) अंग्रेजों की उन्नति का क्या कारण है?
(v) भारतवासियों को सबसे पहले किसकी उन्नति करनी उचित है?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी कहते हैं कि हमारे यहाँ धर्म की आड़ में विविध प्रकार की नीति, समाज-गठन आदि भरे हुए हैं। ये उन्नति का मार्ग प्रशस्त नहीं करते। इसलिए धर्म की उन्नति से सभी प्रकार की उन्नति सम्भव है।
(iii) लेखक ने धर्म को सभी उन्नतियों का मूल बताया है।
(iv) अंग्रेजों की धर्मनीति और राजनीति परस्पर मिली होना उनकी उन्नति का कारण है।
(v) भारतवासियों को सबसे पहले धर्म की उन्नति करनी उचित है।

Bharatvarsh Unnati Kaise Ho Sakti Hai Ki Vyakhya प्रश्न 4

एक बेफिकरे मॅगनी का कपड़ा पहनकर किसी महफिल में गये। कपड़े को पहिचान कर एक ने कहा अजी अंगी तो फलाने का है दूसरा बोला अजी टोपी भी फलाने की है तो उन्होंने हँसकर जवाब दिया कि घर की तो मूॐ ही मूढ़े हैं। हाय, अफसोस, तुम ऐसे हो गये कि अपने निज की क़ाम की वस्तु भी नहीं । बना सकते। भाइयो अब तो नींद से चौंको। अपने देश की सब प्रकार से उन्नति करो। जिसमें तुम्हारी भलाई हो वैसी ही किताब पढ़ो वैसे ही खेल खेलो वैसी ही बातचीत करो। परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो। अपने देश में अपनी भाषा में उन्नति करो।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और उसके लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) सारी चीजें माँगी होने पर महाशय ने हँसकर अमुक व्यक्ति को क्या जवाब दिया?
(iv) लेखक ने किस बात पर अफसोस व्यक्त किया है?
(v) लेखक ने भारतीयों में किस भावना को विकसित करने पर बल दिया है?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: देशवासियों का आह्वान करते हुए लेखक कहते हैं कि लोगों को चाहिए कि अब वे अज्ञानता की नींद से जाग जाएँ और अपने देश की उन्नति के लिए सर्वविध संलग्न हो जाएँ। इन्हें उन्हीं पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए जो इनके लिए कल्याणकारी हों, वैसे ही खेल खेलने चाहिए तथा वैसी ही बातें करनी चाहिए जो इनके नैतिक उत्थान में सहायक हों। साथ ही इनके लिए इस भ्रम से मुक्त होना भी अनिवार्य है कि विदेशी वस्तुएँ व भाषा हमारी वस्तुओं व भाषा से श्रेष्ठ । अपने देश को स्वावलम्बी राष्ट्र के रूप में विकसित करने के लिए स्वदेशी वस्तुओं और अपनी ही भाषा का प्रयोग करना होगा तथा विदेशी भाषा और वस्तुओं पर अपनी निर्भरता को समाप्त करना होगा।
(iii) सारी चीजें माँगी होने पर महाशय ने हँसकर अमुक व्यक्ति को यह जवाब दिया कि अजी घर की तो मूर्छ। ही मूछे हैं।
(iv) लेखक ने इस बात पर अफसोस व्यक्त किया है कि भारतवासी इतने अकर्मण्य हो गए हैं कि वे निज काम की वस्तुएँ भी नहीं बना सकते।
(v) लेखक ने भारतीयों में स्वदेशी की भावना को विकसित करने पर बल दिया है।

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पाठ 1- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? कक्षा 11 साहित्यिक हिंदी UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 1
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