पाठ 7 अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा कक्षा 11 साहित्यिक हिंदी गद्य गरिमा UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi Chapter 7

पाठ 7 अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा कक्षा 11 साहित्यिक हिंदी गद्य गरिमा UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi Chapter 7

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पाठ 7 अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा कक्षा 11 साहित्यिक हिंदी  गद्य गरिमा UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi Chapter 7


पाठ 7 अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा कक्षा 11 साहित्यिक हिंदी  गद्य गरिमा UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi Chapter 7

लेखक का साहित्यिक परिचय और भाषा-शैली -

प्रश्न:
राहुल सांकृत्यायन की साहित्यिक सेवाओं का उल्लेख करते हुए उनकी भाषा-शैली की विशेषताएँ लिखिए।
या
राहुल सांकृत्यायन के जीवन-परिचय एवं प्रमुख कृतियों का उल्लेख करते हुए उनकी भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
या
राहुल सांकृत्यायन का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
अनेक भाषाओं के ज्ञाता, बौद्ध-साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान्, धुरन्धर घुमक्कड़, महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने हिन्दी भाषा और साहित्य की महान् सेवा की है। इनका सम्पूर्ण जीवन देश-विदेश में भ्रमण करते ही व्यतीत हुआ। इनकी पर्यटन की प्रवृत्ति के मूल में ज्ञान-विज्ञान की इनकी जिज्ञासा ही प्रमुख थी।

राहुल सांकृत्यायन का जीवन-परिचय Rahul Sankrityayan biography in hindi

महापण्डित राहुल सांकृत्यायन का जन्म अपने ननिहाल पन्दहा ग्राम (जिला आजमगढ़) में सन् 1893 ई० में हुआ था। इनके पिता पं० गोवर्धन पाण्डेय कट्टरपन्थी ब्राह्मण थे। ये कनैला नामक ग्राम में निवास करते थे। इनकी माता कुलवन्ती देवी सरल और सात्त्विक विचारों की महिला थीं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा रानी की सराय और निजामाबाद में हुई। राहुल जी के बचपन का नाम ‘केदार’ था। बौद्ध धर्म में आस्था होने के कारण इन्होंने अपना नाम बदलकर बुद्ध के पुत्र के नाम पर राहुल’ रख लिया। ‘संकृति’ इनका गोत्र था, इसीलिए ये राहुल सांकृत्यायन कहलाए। सन् 1907 ई० में मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् इन्होंने वाराणसी में संस्कृत की उच्च शिक्षा प्राप्त की। यहीं इन्हें पालि-साहित्य के प्रति प्रेम उत्पन्न हुआ और अपने नाना द्वारा सुनाई गयी कहानियों से यात्रा के प्रति प्रेम अंकुरित हुआ। इस्माइल मेरठी का निम्नलिखित शेर इनके घुमक्कड़ी जीवन के लिए प्रेरक सिद्ध हुआ-

सैर कर दुनिया की गाफ़िल, ज़िन्दगानी फिर कहाँ।
ज़िन्दगानी गर रही, तो नौजवानी फिर कहाँ ॥

इन्होंने पाँच बार सोवियत संघ, श्रीलंका और तिब्बत की यात्रा की। छ: मास ये यूरोप में रहे। एशिया को तो इन्होंने
न ही डाला था। कोरिया, मंचूरिया, ईरान, अफगानिस्तान, जापान, नेपाल आदि देशों को पर्यटन करने में इन्होंने अपना बहुत-सा समय बिताया। इन्होंने भारत के तो कोने-कोने का भ्रमण किया। बद्रीनाथ, केदारनाथ, कुमाऊँ-गढ़वाल से लेकर कर्नाटक, केरल, कश्मीर, लद्दाख तक भ्रमण किया। राहुल जी मुक्त विचारों के व्यक्ति थे। घुमक्कड़ी ही इनकी पाठशाला थी। यही इनका विश्वविद्यालय था। इन्होंने विश्वविद्यालय की चौखट पर पैर भी नहीं रखा था। भारत का यह पर्यटन-प्रिय साहित्यकार 14 अप्रैल, सन् 1963 ई० को संसार त्यागकर परलोक सिधार गया।

साहित्यिक सेवाएँ – 

राहुल जी उच्चकोटि के विद्वान् और अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। इन्होंने धर्म, दर्शन, पुराण, इतिहास, भाषा एवं यात्रा पर ग्रन्थों की रचनाएँ कीं। हिन्दी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में इन्होंने ‘अपभ्रंश काव्य-साहित्य’ और ‘दक्षिणी हिन्दी-साहित्य’ आदि श्रेष्ठ रचनाएँ प्रस्तुत की। इनकी रचनाओं में प्राचीनता का पुनरावलोकन, इतिहास का गौरव और तत्सम्बन्धी स्थानीय रंगत विद्यमान है। इनकी साहित्यिक सेवाओं का निरूपण निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता हैनिबन्धकार के रूप में

निबन्धकार के रूप में – राहुल जी ने भाषा और साहित्य से सम्बन्धित निबन्धों की रचना की, जिनमें धर्म, इतिहास, राजनीति और पुरातत्त्व प्रमुख हैं। इन्होंने रूढ़ियों के बन्धन ढीले करने के लिए धर्म, ईश्वर, सदाचार आदि विषयों पर निबन्ध लिखे।

उपन्यासकार के रूप में – राहुल जी ने अपने उपन्यासों में भारत के प्राचीन इतिहास का गौरवशाली रूप प्रस्तुत किया है। इन्होंने ‘सिंह सेनापति’ नामक उपन्यास में राजतन्त्र और गणतन्त्र की तुलना करते हुए गणतन्त्र को श्रेष्ठ सिद्ध किया है।

कहानीकार के रूप में – राहुल जी के कहानी-संग्रहों में ‘वोल्गा से गंगा’ और ‘सतमी के बच्चे श्रेष्ठ संग्रह हैं। ‘वोल्गा से गंगा में इन्होंने पिछले आठ हजार वर्षों के मानव-जीवन का विकास कहानी के रूप में प्रस्तुत किया है।

अन्य विधा-लेखक के रूप में – इनके अतिरिक्त राहुल जी ने जीवनी, संस्मरण और यात्रा-साहित्य की विधाओं पर भी प्रभावशाली रीति से सुन्दर रचनाएँ लिखीं हैं। ‘मेरी जीवन-यात्रा’ नामक इनकी आत्मकथात्मक ग्रन्थ पाँच खण्डों में विभक्त है। ‘बचपन की स्मृतियाँ’, ‘असहयोग के मेरे साथी’ आदि संस्मरणात्मक रचनाओं में इनका व्यक्तित्व उभरा है। इन्हें यात्रा-साहित्य लिखने में सर्वाधिक सफलता मिली है।

कृतियाँ – राहुल जी ने विभिन्न विषयों पर 150 से अधिक ग्रन्थों की रचना की, जिनमें से 129 प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-


(1) कहानी – संग्रह-वोल्गा से गंगा’, ‘सतमी के बच्चे’, ‘बहुरंगी मधुपुरी’, ‘कनैल की कथा’ आदि।।
(2) उपन्यास – ‘सिंह सेनापति’, ‘जय यौधेय’, ‘विस्मृत यात्री’, ‘सप्तसिन्धु’, ‘जीने के लिए’ और ‘मधुर स्वप्न’।
(3) आत्मकथा – ‘मेरी जीवन-यात्रा।
(4) दर्शन – ‘दर्शन दिग्दर्शन’, ‘वैज्ञानिक भौतिकवाद’, ‘बौद्ध दर्शन’।
(5) विज्ञान – ‘विश्व की रूपरेखा’।
(6) इतिहास – मध्य एशिया का इतिहास’, ‘इस्लाम धर्म की रूपरेखा, “आदि-हिन्दी की कहानियाँ, ‘दक्खिनी हिन्दी काव्यधारा’ आदि। ।
(7) यात्रा-साहित्य – ‘लंका-तिब्बत-यात्रा’, ‘मेरी लद्दाख-यात्रा’, ‘रूस और ईरान में पच्चीस मास’, ‘जापान यात्रा के पन्ने’, ‘घुमक्कड़शास्त्र’।
(8) संस्मरण – ‘बचपन की स्मृतियाँ’, ‘असहयोग के मेरे साथी’, ‘जिनका मैं कृतज्ञ’।।
(9) कोश – ‘शासन शब्दकोश’, ‘राष्ट्रभाषा कोश’, ‘तिब्बती-हिन्दी कोश’।।
(10) देश-दर्शन – ‘सोवियत भूमि’, ‘किन्नर देश’, ‘हिमालय प्रदेश’, ‘जौनसार’, ‘देहरादून’ आदि।
(11) जीवनी साहित्य – सरदार पृथ्वीसिंह’, ‘नये भारत के नये नेता’, ‘वीर चंद्रसिंह गढ़वाली’ आदि।
(12) अनूदित रचनाएँ – ‘विस्मृति के गर्भ से’, ‘सोने की टाल’, ‘सूदखोर की मौत’, ‘शैतान की आँखें आदि।

भाषा और शैली


(अ) भाषागत विशेषताएँ

विषय के अनुसार अपनी भाषा-शैली का रूप बदलने वाले राहुल जी,संस्कृत भाषा के प्रकाण्डे पण्डित होने के साथ-साथ अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। इनके दार्शनिक ग्रन्थों में संस्कृतनिष्ठ भाषा के दर्शन होते हैं। प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन करते समय इनकी भाषा काव्यमयी और आलंकारिक तथा वर्णनात्मक निबन्धों में व्यावहारिक हो जाती है। इनकी भाषा में कहीं भी बनावटीपन नहीं है तथा शब्द-प्रयोग में स्वच्छन्दता से काम लिया गया है। इन्होंने संस्कृत के क्लिष्ट और समासयुक्त शब्दों का प्रयोग नहीं किया है, इसलिए इनकी भाषा में सरलता का गुण विद्यमान है तथा विचारों और भावों को प्रकट करने की पूर्ण क्षमता है। इन्होंने विदेशी शब्दों को अपनी भाषा की भंगिमा के साथ प्रयोग किया। मुहावरों के प्रयोग से भाषा में ‘शक्तिमत्ता बन पड़ी है।

(ब) शैलीगत विशेषताएँ

राहुल जी की शैली इनके मस्त व्यक्तित्व के अनुरूप है। भाषा के समान ही इनकी शैली भी सरल, सुबोध और प्रभावशाली है, जिसका रूप विषय और परिस्थिति के अनुसार बदलता रहता है। इनकी शैली के निम्नलिखित रूप देखने को मिलते हैं

(1) वर्णनात्मक शैली: राहुल जी ने अधिकतर यात्रा-साहित्य की रचना की है; अत: इसमें वर्णनों की प्रधानता है। इस शैली की भाषा में प्रवाह, मधुरता और सरलता है तथा वाक्य छोटे-छोटे हैं।
(2) विवेचनात्मक शैली: राहुल जी के इतिहास, विज्ञान, दर्शन और गम्भीर विषय-सम्बन्धी निबन्धों में विवेचनात्मक शैली के दर्शन होते हैं। इस शैली की भाषा संस्कृतनिष्ठ है तथा इसमें चिन्तन की गहनता और
तार्किकता की प्रधानता है।
(3) व्यंग्यात्मक शैली:  राहुल जी ने अपने निबन्धों में सामाजिक कुरीतियों, पाखण्डों और निरर्थक परम्पराओं पर व्यंग्य प्रहार किये हैं। इनके व्यंग्यों में पैनापन पाया जाता है।
(4) उद्बोधन शैली: राहुल जी के निबन्धों में पाठकों के लिए सन्देश भी हैं। ये अपनी बात को मनवाने के लिए सरल, सुबोध और प्रभावशाली भाषा का प्रयोग करते हैं।
(5) उद्धरण शैली: अपनी बात की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए राहुल जी अनेक विद्वानों और प्राचीन ग्रन्थों के उद्धरण भी देते हैं।
निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि राहुल जी की शैली सरल और सुगम है।

साहित्य में स्थान:

भाषा के प्रकाण्ड पण्डित राहुल सांकृत्यायन ने अपने अनुभव पर आधारित विशद लेखन से हिन्दी-साहित्य के विकास में अपूर्व योगदान दिया है। राहुल सांकृत्यायन ने हिन्दी-साहित्य के साथ-साथ इतिहास, भूगोल, दर्शन, राजनीति, समाजशास्त्र, धर्म आदि सभी विषयों पर रचना करके हिन्दी-साहित्य को समृद्ध किया है, जिससे इनकी गणना हिन्दी के प्रमुख समर्थ रचनाकारों में की जाती रहेगी।

गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर


प्रश्न – दिए गए गद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1:
कूप-मंडूकता तेरा सत्यानाश हो। इस देश के बुद्धओं ने उपदेश करना शुरू किया कि समुन्दर के खारे पानी और हिन्दू धर्म में बड़ा बैर है, उसे छूने मात्र से वह नमक की पुतली की तरह गल जायगा। इतना बतला देने पर क्या कहने की आवश्यकता है कि समाज के कल्याण के लिए घुमक्कड़ धर्म कितनी आवश्यक चीज है? जिस जाति या देश ने इस धर्म को अपनाया, वह चारों फलों का भागी हुआ और जिसने उसे दुराया, उसको नरक में भी ठिकाना नहीं। आखिर घुमक्कड़ धर्म को भूलने के कारण ही हम सात शताब्दियों तक धक्का खाते रहे, ऐरे-गैरे जो भी आये, हमें चार लात लगाते गये।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) देश के उपदेशकों ने किनमें बड़ा बैर बताया है?
(iv) घुमक्कड़ धर्म किसलिए आवश्यक है?
(v) घुमक्कड़ धर्म को अपनाने वालों और उसे दुराने वालों के बारे में लेखक ने क्या बताया
उत्तर:
(i) प्रस्तुत ग़द्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित और राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखित ‘अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा’ शीर्षक लेख से उद्धृत है।
अथवा निम्नवत् लिखिए
पाठ का नाम – अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा।।
लेखक का नाम – राहुल सांकृत्यायन।
[संकेत-इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए प्रश्न (i) का यही उत्तर लिखना है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – जिसने घुमक्कड़ी धर्म को त्यागा, वह पतन के गर्त में गिरता गया। सीमित दायरे में संकुचित हो जाने के कारण भारतीयों का विकास न केवल रुक गया, वरन् वह विश्व की तुलना में अत्यधिक पिछड़ भी गया। भ्रमण से जो साहस का गुण विकसित होता है, उसका | उनमें नितान्त अभाव हो गया और यही दोष उनकी पराधीनता का कारण सिद्ध हुआ।
(iii) देश के उपदेशकों ने समुन्दर के खारे पानी और हिन्दू धर्म में बड़ा बैर बताया है।
(iv) समाज के कल्याण के लिए घुमक्कड़ धर्म आवश्यक है।
(v) लेखक ने बताया है कि घुमक्कड़ धर्म को अपनाने वाला चारों फलों का भागी हो जाता है और उसे दुराने वाले को नरक में भी ठिकाना नहीं मिलता।

प्रश्न 2:
यह कोई आकस्मिक बात नहीं थी, समाज अगुओं ने चाहे कितना ही कूपमंडूक बनाना चाहा, लेकिन इस देश में ऐसे माई के लाल जब तब पैदा होते रहे, जिन्होंने कर्म-पथ की ओर संकेत किया। हमारे इतिहास में गुरु नानक का समय दूर का नहीं है, लेकिन अपने समय के वह महान् घुमक्कड़ थे। उन्होंने भारत-भ्रमण को ही पर्याप्त नहीं समझा, ईरान और अरब तक का धावा मारा। घुमक्कड़ी किसी बड़े योग से कम सिद्धिदायिनी नहीं है और निर्भीक तो वह एक नम्बर का बना देती है।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) देश के महान लोगों (माई के लाल) ने किस ओर संकेत किया?
(iv) लेखक ने किसे अपने समय के महान घुमक्कड़ बताया है?
(v) लेखक ने घुमक्कड़ी की उपमा किससे दी है?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – निश्चित ही घुमक्कड़ी योग-साधना से कम फलदायी नहीं है। जिस प्रकार योग-साधना से व्यक्ति को विभिन्न प्रकार की सिद्धियाँ; अलौकिक या लोकोत्तर क्षमता या शक्ति; प्राप्त हो जाती हैं, उसी प्रकार पर्यटन से भी। पुन: लेखक का कहना है कि पर्यटनप्रियता व्यक्ति को सिद्धियाँ दे या न दे लेकिन वह व्यक्ति को निडर तो निश्चित ही बना देती है।
(iii) देश के महान लोगों (माई के लाल) ने कर्म-पथ की ओर संकेत किया है।
(iv) लेखक ने गुरुनानक को अपने समय के महान घुमक्कड़ बताया है।
(v) लेखक ने घुमक्कड़ी की उपमा किसी बड़े योग से दी है।

प्रश्न 3:
घुमक्कड़ी से बढ़कर सुख कहाँ मिल सकता है, आखिर चिन्ताहीनता तो सुख का सबसे स्पष्ट रूप है। घुमक्कड़ी में कष्ट भी होते हैं लेकिन उसे उसी तरह समझिए, जैसे भोजन में मिर्च मिर्च में यदि कड़वाहट न हो, तो क्या कोई मिर्च-प्रेमी उसमें हाथ भी लगाएगा? वस्तुत: घुमक्कड़ी में कभी-कभी होने वाले कड़वे अनुभव उसके रस को और बढ़ा देते हैं उसी तरह जैसे काली पृष्ठभूमि में चित्र अधिक खिल उठता है।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) सुख का सबसे स्पष्टुं रूप क्या है?
(iv) लेखक ने घुमक्कड़ी में मिलने वाले कष्टों को किसके समान बताया है?
(v) घुमक्कड़ी में कभी-कभी होने वाले कड़वे अनुभव उसके रस को किस तरह और बढ़ा देते हैं?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – राहुल जी कहते हैं कि निश्चिन्त होकर घूमने में जो सुख मिलता है, वह अन्य किसी कार्य में नहीं मिल सकता। चिन्ता से मुक्त व्यक्ति ही घुमक्कड़ी कर सकते हैं और चिन्ताहीन होने में ही सबसे बड़ा सुख है।
(iii) सुख का सबसे स्पष्ट रूप चिन्ताहीनता है।
(iv) लेखक ने घुमक्कड़ी में मिलने वाले कष्टों को भोजन में मिर्च के समान बताया है।
(v) घुमक्कड़ी में कभी-कभी होने वाले कड़वे अनुभव उसके रस को उसी प्रकार बढ़ा देते हैं जैसे काली पृष्ठभूमि में चित्र अधिक खिल उठता है।

प्रश्न 4:
यदि माता-पिता विरोध करते हैं तो समझना चाहिए कि वह भी प्रह्लाद के माता-पिता के नवीन संस्करण हैं। यदि हितु-बान्धव बाधा उपस्थित करते हैं तो समझना चाहिए कि वे दिवांध हैं। यदि धर्माचार्य कुछ उलटा-सीधा तर्क देते हैं तो समझ लेना चाहिए कि इन्हीं ढोंगियों ने संसार को कभी सरल और सच्चे पथ पर चलने नहीं दिया। यदि राज्य और राजसी नेता अपनी कानूनी रुकावटें डालते हैं तो हजारों बार के तजुर्बा की हुई बात है कि महानदी के वेग की तरह घुमक्कड़ की गति को रोकने वाला दुनिया में कोई पैदा नहीं हुआ। बड़े-बड़े कठोर पहरे वाली राज्य-सीमाओं को घुमक्कड़ों ने आँख में धूल झोंककर पार कर लिया।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(ii) प्रहलाद के माता-पिता के नवीन संस्करण किन्हें समझना चाहिए?
(iv) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक ने लोगों को क्या सुझाव दिया है?
(v) ‘आँखों में धूल झोंकना’ मुहावरे का क्या अर्थ है?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक का कहना है कि यदि घुमक्कड़ी में स्वयं आपके माता-पिता द्वारा विरोध उपस्थित किया जा रहा हो तो आपको इन्हें हिरण्यकश्यप (प्रह्लाद का पिता) का वर्तमान युग में हुआ अवतार समझनी चाहिए.और उनके कथनों की उसी प्रकार से अवहेलना कर देनी चाहिए, जिस प्रकार से प्रह्लाद ने की थी। यदि आपके भाई-बन्धु और तथाकथित हितचिन्तक आपकी घुमक्कड़ी प्रवृत्ति का विरोध करते हों तो उनकी बातों पर भी उसी प्रकार से ध्यान नहीं देना चाहिए, जिस प्रकार किसी दिवान्ध (जिसे दिन के प्रकाश में दिखाई नहीं पड़ता; लक्षणों से मूर्ख) व्यक्ति की बातों पर ध्यान नहीं दिया जाता।
(iii) घुमक्कड़ी व्रत ग्रहण करने का विरोध करने वाले माता-पिता को प्रहलाद के माता-पिता के नवीन संस्करण समझना चाहिए।
(iv) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक ने घुमक्कड़ी को सर्वाधिक महत्त्व देते हुए लोगों को सभी प्रकार के । विरोधों की अवहेलना करने का सुझाव दिया हैं।
(v) ‘आँखों में धूल झोंकना’ मुहावरे का अर्थ है-धोखा देना।

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