पाठ 1 कबीरदास कक्षा 11 हिंदी काव्यांजलि | UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi Chapter 1

पाठ 1 कबीरदास कक्षा 11 हिंदी काव्यांजलि | UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi Chapter 1

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पाठ 1 कबीरदास कक्षा 11 हिंदी काव्यांजलि | UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi Chapter 1

पाठ 1 कबीरदास कक्षा 11 हिंदी काव्यांजलि | UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi Chapter 1

कवि-परिचय एवं काव्यगत विशेषताएँ


Kabir Das Ki Sakhi In Hindi With Meaning Class 11 प्रश्न:
कबीरदास का जीवन-परिचय दीजिए।
या
कबीरदास की काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या
सन्त कबीर का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों का नामोल्लेख कीजिए तथा साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:

सन्त कबीरदास का जीवन-परिचय जीवन-परिचय - sant kabir biography in hindi

सन्त (ज्ञानाश्रयी निर्गुण) काव्यधारा के प्रवर्तक कबीरदास का जन्म संवत् 1456 (सन् 1399) की ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा, सोमवार को हुआ था। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है

चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ ठए।
जेठ सुदी बरसायत को, पूरनमासी प्रगट भए ॥ (कबीर-चरित-बोध)

बाबू श्यामसुन्दर दास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, श्री हजारीप्रसाद द्विवेदी आदि इसी संवत् को स्वीकार करते हैं। एक जनश्रुति के अनुसार इनका जन्म हिन्दू परिवार में हुआ था। कहते हैं कि ये एक विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे, जिसने इन्हें लोक-लाज के भय से काशी के लहरतारा नामक स्थान पर तालाब के किनारे छोड़ दिया था, जहाँ से नीरू नामक एक जुलाहा एवं उसकी पत्नी नीमा नि:सन्तान होने के कारण इन्हें उठा लाये।

कबीर के जन्म-स्थान के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद हैं, परन्तु अधिकतर विद्वान् इनका जन्म काशी में ही मानते हैं, जिसकी पुष्टि स्वयं कबीर की यह कथन भी करता है – काशी में परगट भये, हैं रामानन्द चेताये। इससे इनके गुरु का नाम भी पता चलता है कि प्रसिद्ध वैष्णव सन्त आचार्य रामानन्द से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। गुरुमन्त्र के रूप में इन्हें ‘राम’ नाम मिला, जो इनकी समग्र भावी साधना का आधार बना।

कबीर की पत्नी का नाम लोई था, जिससे इनके कमाल नामक पुत्र और कमाली नामक पुत्री उत्पन्न हुई। कबीर बड़े निर्भीक और मस्तमौला स्वभाव के थे। व्यापक देशाटन एवं अनेक साधु-सन्तों के सम्पर्क में आते रहने के कारण इन्हें विभिन्न धर्मों एवं सम्प्रदायों का ज्ञान प्राप्त हो गया था। ये बड़े सारग्राही एवं प्रतिभाशाली थे। कबीर की दृढ़ मान्यता थी कि मनुष्य को अपने कर्मों के अनुसार ही गति मिलती है, स्थान-विशेष के प्रभाव से नहीं। अपनी इसी मान्यता को सिद्ध करने के लिए अन्त समय में ये मगहर चले गये; क्योंकि लोगों की मान्यता थी कि काशी में मरने वाले को मुक्ति मिलती है, किन्तु मगहर में मरने वाले को नरक। अधिकतर विद्वानों ने माना है कि कबीर की मृत्यु संवत् 1575 (सन् 1519) में हुई। इसके समर्थन में अग्रलिखित उक्ति प्रसिद्ध है

संवत् पंद्रह सौ पछत्तरा, कियो मगहर को गौन।
माघे सुदी एकादशी, रलौ पौन में पौन ॥

कृतियाँ-कबीर लिखना-पढ़ना नहीं जानते थे। यह बात उन्होंने स्वयं कही है
मसि कागद छूयो नहीं, कलम गयो नहिं हाथ।

उनके शिष्यों ने उनकी वाणियों का संग्रह ‘बीजक’ नाम से किया, जिसके तीन मुख्य भाग हैं – साखी, सबद (पद), रमैनी। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार ‘बीजक’ का सर्वाधिक प्रामाणिक अंश ‘साखी’ है। इसके बाद सबद और अन्त में ‘रमैनी’ का स्थान है।

साखी संस्कृत के ‘साक्षी’ शब्द का विकृत रूप है और ‘धर्मोपदेश’ के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अधिकांश साखियाँ दोहों में लिखी गयी हैं, पर उनमें सोरठे का प्रयोग भी मिलता है। कबीर की शिक्षाओं और सिद्धान्तों का निरूपण अधिकतर ‘साखी’ में हुआ है।
सबद गेय-पद हैं, जिनमें संगीतात्मकता पूरी तरह विद्यमान है। इनमें उपदेशात्मकता के स्थान पर भावावेश की प्रधानता है; क्योंकि इनमें कबीर के प्रेम और अन्तरंग साधना की अभिव्यक्ति हुई है।
रमैनी चौपाई छन्द में रची गयी है। इनमें कबीर के रहस्यवादी और दार्शनिक विचारों को प्रकट किया गया है।

काव्यगत विशेषताएँ -


भावपक्ष की विशेषताएँ

कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे, किन्तु ये बहुश्रुत होने के साथ-साथ उच्च कोटि की प्रतिभा से सम्पन्न थे। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने भी स्पष्ट कहा है कि ‘‘कविता करना कबीर का लक्ष्य नहीं था, कविता तो उन्हें सेंत-मेंत में मिली वस्तु थी, उनका लक्ष्य लोकहित था।” इस दृष्टि से उनके काव्य में उनके दो रूप दिखाई पड़ते हैं (1) सुधारक रूप तथा (2) साधक (या भक्त) रूप। उनके बाद वाले रूप में ही उनके सच्चे कवित्व के दर्शन होते हैं।

(1) कबीर का सुधारक रूप –

 कबीरदास के समय में हिन्दुओं और मुसलमानों में कटुता चरम सीमा पर थी। कबीर ने इन दोनों को पास लाना चाहा। इसके लिए उन्होंने सामाजिक और धार्मिक दोनों स्तरों पर प्रयास किया।

(क) सामाजिक स्तर पर कबीर ने देखा कि मुस्लिम समाज में समता का भाव विद्यमान है, परन्तु हिन्दू-समाज में ऊँच-नीच और छुआछूत का भाव बहुत प्रबल है। फलत: हिन्दू समाज में व्याप्त विषमता पर कटु प्रहार करते हुए वे कहते हैं

ऊँचे कुल क्या जनमिया, जे करणी ऊँच न होइ।
सोवन कलस सुरै भया, साधू निंदा सोई॥

(ख) धार्मिक क्षेत्र में भी कबीर का सुधारक रूप उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि सामाजिक क्षेत्र में। उन्होंने देखा कि सारे धर्मों का मूल तत्त्व एक ही है, केवल बाहरी आचार-विचार (जैसे—मूर्तिपूजा, उपवास, तीर्थ, रोजा, नमाज आदि) में भिन्नता के कारण धर्म भी भिन्न दिखाई पड़ते हैं; सर्वत्र पाखण्ड का साम्राज्य है, चाहे हिन्दू हों या मुसलमान, सभी आडम्बर में विश्वास करते हैं। अत: उन्होंने हिन्दू-मुसलमानों में व्याप्त इन बाह्याडम्बरों का डटकर विरोध किया

पाहन पूजे, हरि मिलें, तो मैं पूजू पहार।
ताते यह चाकी भली, पीसि खाय संसार ॥ (मूर्तिपूजा का खण्डन)
काँकर-पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय।
तो चढि मुल्ला बॉग दे, क्या बहिरा हुआ खुदाय ॥ (अजान की निरर्थकता)

इस प्रकार सुधारक के रूप में कबीरदास की वाणी कटु लगती है, पर उनके तर्क बड़े सटीक और विरोधी को निरुत्तर करने वाले हैं।

(2) कबीर का साधक( या भक्त )रूप -

सुधारक रूप में यदि कबीर में तर्कशक्ति और बुद्धि की प्रखरता देखने को मिलती है तो साधक रूप में उनके भावुक हृदय से मार्मिक साक्षात्कार होता है। कबीर के अनुसार मानव-जीवन की सार्थकता ईश्वर-दर्शन में है। उस ईश्वर को विभिन्न धर्मों के अनुयायी अलग-अलग नामों से पुकारते हैं। कबीर ने इसे राम नाम से पुकारा है, पर उनके राम दशरथ-पुत्र श्रीराम न होकर निर्गुण-निराकार राम
कबीर का कहना है कि परमात्मा को प्रेम से ही पाया जा सकता है। प्रेम की साधना वस्तुतः विरह की साधना है। आठों प्रहर राम के ध्यान में डूबे रहना ही सच्चे प्रेम का लक्षण है

चिन्ता तो हरि नाँव की, और न चिन्ता दास।
जो कुछ चितवै राम बिन, सोइ काल के पास ॥

कबीर पर यद्यपि वेदान्त के अतिरिक्त हठयोग का भी प्रभाव परिलक्षित होता है, परन्तु सामान्यतः वे सहज साधना पर ही बल देते हैं। कबीर के काव्य का मुख्य प्रतिपादृा-निर्गुण सत्ता के प्रति ज्ञानपूर्ण भक्ति का निवेदन है। कलापक्ष की विशेषताएँ

(1) अनगढ़, किन्तु सहज-सशक्त भाषा – कबीर ने जो कुछ कहा है, वह स्वानुभूति के बल पर ही कहा है, फलतः उनकी वाणी में बड़ी सहजता और मार्मिकता है, जो हृदय पर सीधी चोट करती है। कुछ लोग उनकी भाषी को अनगढ़ कहते हैं, पर दूसरों की दृष्टि में यह अनगढ़ता ही उनकी सहजता है। व्यापक देशाटन के कारण उनकी भाषा में विभिन्न प्रादेशिक बोलियों का सम्मिश्रण होना स्वाभाविक था। उन्होंने स्वयं अपनी भाषा को ‘पूरबी’ कहा है, किन्तु उसमें अवधी, ब्रज, खड़ी बोली, राजस्थानी, पंजाबी, संस्कृत, फारसी आदि का मिश्रण भी दिखाई पड़ता है। इसी कारण आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जैसे विद्वान् उनकी भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ या ‘पंचमेल खिचड़ी’ कहते हैं।

(2) प्रवाहमयी शैली – कबीर की शैली उपदेशात्मक, व्यंग्यात्मक एवं भावात्मक है। उसमें अद्भुत प्रवाह, स्वाभाविकता एवं मार्मिकता है। वह किसी पहाड़ी झरने की भाँति अपने तेज बहाव में हमको बहाती चलती है और हमारे मने पर एक अमिट छाप छोड़ जाती है। उनके पदों में संगीतात्मकता है। रहस्यवादी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति के स्थलों पर प्रतीकों का प्रयोग हुआ है और उलटबाँसियों में चमत्कारपूर्ण शैली के कारण कुछ दुर्बोधता भी आ गयी है।

(3) अलंकार – अनुप्रास, यमक, उपमा, रूपक, विरोधाभास, अन्योक्ति, दृष्टान्त आदि अनेक अलंकार स्वाभाविक रूप से उनके काव्य को शोभा प्रदान करते हैं। रूपक का एक उदाहरण प्रस्तुत है
संतौ     भाई      आई     ग्यान    की     आँधी    रे।
भ्रम की.टाटी सबै उड़ाणीं, माया रहै न बाँधी रे॥

(4) छन्द – कबीर ने दोहा, चौपाई तथा गेय-पदों में काव्य-रचना की है। कबीर को दोहा बहुत प्रिय है। इनकी साखियों में दोहा, रमैनी में चौपाई तथा सबद में गेय-पदों का प्रयोग हुआ है, जो भावाभिव्यंजना में पूर्ण समर्थ है।

(5) प्रतीकात्मकता – अपने सिद्धान्त के प्रतिपादन के लिए कबीर ने प्रतीकों का प्रचुरता से प्रयोग किया है। यह उन पर साधनात्मक रहस्यवाद के प्रभाव को भी सूचक है। सामान्यतः इससे उनकी शैली की व्यंजकता बढ़ी है। जैसे – शरीर को ईश्वर रूपी जुलाहे के हाथों बुनी बारीक चादर का प्रतीक बनाना अत्यन्त सारगर्भित है – झीनी झीनी-बीनी चदरिया”।
साहित्य में स्थान – आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार, “हिन्दी-साहित्य के हजार वर्षों के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ। महिमा में यह व्यक्तित्व केवल एक ही प्रतिद्वन्द्वी जानता है – तुलसीदास।”

पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

Kabir Das Sakhi Explanation Class 11 Up Board प्रश्न:
निम्नलिखित पद्यांशों के आधार पर उनसे सम्बन्धित दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

साखी

प्रश्न 1:
दीपक  दीया  तेल भरि,  बाती  दई  अघट्ट ।
पूरा किया बिसाहुणाँ, बहुरि न आवौं हट्ट ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कबीर ने दीपक किसे बताया है?
(iv) कबीर ने बाजार किसे बताया है?
(v) कबीर की आत्मा दोबारा इस संसार में क्यों नहीं आना चाहती?
उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘साखी’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है। इसके रचयिता भक्त कवि कबीरदास हैं।
अथवा निम्नवत् लिखिए
शीर्षक का नाम – साखी।
कवि का नाम – कबीरदास।
[संकेत – इस शीर्षक के शेष सभी पद्यांशों के लिए प्रश्न (i) का यही उत्तर लिखना है।]

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – कबीर कहते हैं कि गुरु ने अपने शिष्य को प्रेमरूपी तेल से भरा हुआ ज्ञानरूपी दीपक दिया। उसमें कभी न घटने वाली ईश्वरीय लगनरूपी बत्ती भी दे दी। इस अद्भुत ज्ञानरूपी दीपक के प्रकाश में कबीर ने अपने जीवन को फेरा और तब उसे इस संसाररूपी बाजार में | कुछ भी खरीदने-बेचने के लिए दुबारा नहीं आना पड़ेगा, क्योंकि उसकी जीवात्मा ब्रह्ममय हो जाएगी ‘ और परब्रह्म सनातन है, उसका जन्म-मरण नहीं होता।
(iii) कबीर ने गुरु ज्ञान को दीपक बताया है।
(iv) कबीर ने इस संसार को बाजार बताया है।
(v) कबीर की आत्मा जीवन-मरण का कष्ट भोगने के लिए दोबारा इस संसार में नहीं आना चाहती।

प्रश्न 2:
केसौ कहि कहि कूकिये, ना सोइयै असरार ।
राति दिवस कै कूकणें, कबहूँ लगै पुकार ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति का अचूक साधन किसे बताया है?
(iv) कबीर ने किंस नींद में सोने से मना किया है?
(v) कबीर प्रभु-स्मरण से क्या प्राप्त करना चाहते हैं?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – राम का नाम बहुत प्यारा नाम है, इसलिए बार-बार राम का नाम लीजिए। हठपूर्वक अज्ञान की नींद में सोते मत रहिए, रात-दिन ईश्वर का नाम जपने से कभी-न-कभी आपकी पुकार की भनक दीन-दयालु के कानों में अवश्य पड़ेगी। फलत: वे तुम पर कृपा करेंगे और तुम्हारा उद्धार होगा।
(iii) कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति का अचूक साधन प्रभु-स्मरण को बताया है।
(iv) कबीर ने अज्ञान की नींद सोने से मना किया है।
(v) कबीर प्रभु-स्मरण से मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं।

Kabir Das Ki Sakhi In Hindi With Meaning Class 11 Up Board प्रश्न 3 -
पाणी  ही  हैं  हिम भया,  हिम  है  गया  बिलाइ ।
जो कुछ था सोई भया, अब कुछ कहा न जाई ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(ii) कबीर ने पानी और बर्फ का उदाहरण देकर क्या बताया है?
(iv) जल (ब्रह्म) की दूसरी अवस्था कौन-सी है?
(v) जीवात्मा मोक्ष प्राप्त करके किसका रूप धारण करती है?
उत्तर:
(i) रेखांकित अंश की व्याख्या – कबीरदास जी ने यहाँ पानी को परमात्मा और बर्फ को जीवात्मा के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा है कि जिस प्रकार पानी जमकर बर्फ और बर्फ पिघलकर पानी बन जाता है, ठीक उसी प्रकार ईश्वर से साकार जीवात्मा का जन्म होता है और शरीर को त्यागकर वह जीवात्मा पुनः परमात्मा में विलीन हो जाती है। इस प्रकार कबीरदास जी ने इस दार्शनिक तथ्य आत्मा परमात्मा का ही एक अंश है’ को अभिव्यक्ति दी है।
(iii) कबीर ने पानी और बर्फ का उदाहरण देकर जीवात्मा को परमात्मा का ही रूप बताया है।
(iv) जल (ब्रह्म) की दूसरी अवस्था बर्फ (जीव) है।
(v) जीवात्मा मोक्ष प्राप्त करके परमात्मा का रूप धारण करती है।

पदावली

Kabir Das Ki Padavali In Hindi Class 11sakhi Class 11 Up Board प्रश्न 1:
पंडित बाद बदंते झुठा ।
राम कह्याँ दुनियाँ गति पावै, खाँड कह्याँ मुख मीठा ।।
पावक कह्याँ पाँव जे दाझै, जल कहि त्रिषा बुझाई ।
भोजन कह्याँ भूषि जे भाजै, तो सब कोई तिरि जाई ।।
नर के साथ सूवा हरि बोले, हरि परताप न जाणै ।
जो कबहूँ उड़ि जाइ जंगल मैं, बहुरि न सुर तें आजै ।।
साँची प्रीति बिषै माया हूँ, हरि भगतनि सँ हाँसी ।
कहै कबीर प्रेम नहिं उपज्यौ, बाँध्यौ जमपुरि जासी ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइट।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) पंडित लोग किस बात को निरर्थक बताते हैं ।
(iv) किसकी संगति में तोता राम-नाम का उच्चारण करने लगता है?
(v) यदि राम-नाम का उच्चारण करने वाले व्यक्ति के हृदय में सच्चा प्रेम उत्पन्न नहीं होता तो उसकी क्या दशा होती है?
उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘पदावली’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है। इसके रचयितासन्त कवि कबीरदास हैं।
अथवा निम्नवत् लिखिए
शीर्षक का नाम – पदावली।
कवि का नाम – कबीरदास।
[संकेत-इस शीर्षक के शेष सभी पद्यांशों के लिए प्रश्न (i) का यही उत्तर लिखना है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – कबीरदास जी का कहना है कि पण्डित लोग ईश्वर के विषय में झूठी
बातें करते हैं; जैसे –  “राम का नाम लेने मात्र से ही मुक्ति मिल जाती हैं। कबीर इसका विरोध करते हैं। उनका तर्क है कि यदि राम का नाम लेने मात्र से मुक्ति मिलती तो पानी का नाम लेने से प्यास बुझ जाती और भोजन कहने मात्र से भूख मिट जाती, पर वास्तव में ऐसा होता नहीं। मुक्ति के लिए हृदय की पवित्रता, साधना, सदाचार एवं ज्ञानपूर्ण भक्ति आवश्यक है।
(iii) पंडित लोग निजी अनुभव के बिना शास्त्र के आधार पर जो तर्क प्रस्तुत करते हैं वे सब निरर्थक हैं।
(iv) मनुष्य की संगति में तोता राम-नाम का उच्चारण करने लगता है।
(v) यदि राम नाम का उच्चारण करने वाले व्यक्ति के हृदय में सच्चा प्रेम उत्पन्न नहीं होता तो उसकी वही दशा होती है जो साधारण जनों की होती है।

Kabir Das Sakhi Summary In Hindi Class 11 प्रश्न 2:
काहे री नलनीं हूँ कुम्हिलानी,
तेरे       ही                नालि                सरोवर          पानी ।
जल में उतपति जल मैं बास, जल मैं नलनी तोर निवास ।।
ना तलि तपति न ऊपरि आगि, तोर हेतु कहु कासनि लागि ।
कहै कबीर जे उदिक समान, ते नहिं मूए हमारे जान ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइए।
(i) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(ii) कबीरदास ने कमलिनी और जल को किसका प्रतीक माना है?
(iv) जीवात्मा क्यों दुःखों का अनुभव करती है?
(v) कैसे साधक कभी नहीं मरते?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – कबीर ने कमलिनी को सम्बोधित करते हुए कहा है कि हे कमलिनी! तेरा जन्म जल में हुआ है और जल में ही तू रहती है। इस रूप में ‘कमलिनी आत्मा का और ‘जल’ परमात्मा का प्रतीक है। कबीर का मत है कि जो स्वयं ब्रह्मस्वरूप हो गये हैं, वे कभी भी मृत्यु को प्राप्त नहीं होते। ब्रह्मस्वरूप हो जाने पर मृत्यु से कैसा भय? ।
(iii) कबीरदास ने कमलिनी को जीवात्मा का और जल को परमात्मा का प्रतीक माना है।
(iv) जीवात्मा सांसारिक विषयों के भ्रम में पड़कर वास्तविक आनन्द न पाकर दु:खों का अनुभव करती है।
(v) जिनकी आत्मा परमात्मा में लीन रहती है ऐसे साधक कभी नहीं मरते।

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