भक्ति नीति माधुरी | कक्षा 4 हिन्दी कलरव फुलवारी पाठ 12 | Class 4 Hindi Fulwari Chapter 12

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भक्ति नीति माधुरी | कक्षा 4 हिन्दी कलरव “फुलवारी” पाठ 12 भक्ति नीति माधुरी | Class 4 Hindi Fulwari Chapter 12


कबीरदास

साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जाके हिरदै साँच है, ताके हिरदै आप ।।
वृच्छ कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर ।।
जहाँ ज्ञान तहेँ धर्म है, जहाँ झूठ तहँ पाप ।
जहाँ लोभ तहँ काल है, जहाँ छिमा तहँ आप ।।

भावार्थ : कबीरदास जी कहते हैं कि सच्चाई के समान कोई तप नहीं है | जो व्यक्ति सच्चा है, उसके ह्रदय में स्वयं ईश्वर का निवास होता है | जिस प्रकार बृक्ष स्वयं अपना फल नहीं खाते और नदी अपना पानी स्वयं नहीं पीती उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति दूसरों की भलाई के लिए साधु का वेश धारण करता है | कबीरदास जी कहते हैं कि जहाँ ज्ञान की बातें हों, वही सच्चा धर्म है | जहाँ झूठ होता है, वहाँ पाप ही पाप होता है | इसी प्रकार जहाँ लालच है, वहीं मृत्यु है और जहाँ क्षमा है, वहीं ईश्वर का वास है |

रहीम

बिगरी बात बनै नहीं, लाख करै किन कोय ।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय।
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग ।
चंदन विष व्यापत नहिं, लिपटे रहत भुजंग ।।
बड़े बड़ाई न करे, बड़े न बोलै बोल।
रहिमन हीरा कब कहे, लाख टका मो मोल।।

भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियों में रहीम जी कहते हैं कि जिस प्रकार दूध फट जाने पर उसको मथने पर मक्खन नहीं निकलता है उसी प्रकार एक बार बात बिगड़ जाए तो कितना भी प्रयास किया जाय , बात नहीं बनती | उत्तम स्वभाव वाले व्यक्तियों पर बुरी संगत का कोई असर नहीं होता है ठीक उसी प्रकार जैसे चन्दन के वृक्ष पर विषैले सांप लिपटे रहने पर भी प्रभाव नहीं पड़ता है | जो बुद्धिमान और गुणी लोग होते हैं वे अपना गुणगान स्वयं नहीं करते जैसे बहुत कीमती हीरा स्वयं अपना मूल्य नहीं बताता है |

सूरदास

मैया, कबहिं बढ़ैगी चोटी ?
किती बार मोहिँ दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी ।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, हवै है लाँबी-मोटी ।
काढ़त-गुहत नहवावत जैहै, नागिनि सी भु्ँ लोटी ।
काचौ दूध पियावति पचि-पचि, देति न माखन-रोटी ।
सूरज चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी ।।

भावार्थ : सूरदास जी कृष्ण और माता यशोदा के बीच संवाद बता रहे हैं , कृष्ण माँ यशोदा से पूछ रहे हैं कि हे माँ मेरी चोटी कब बड़ी होगी , मैं दिन भर में कितनी बार दूध पीता हूँ लेकिन ये आज भी उतनी ही है | आप तो कह रही थीं कि अगर मैं रोज दूध पियूँगा तो मेरी चोटी बलदाऊ जैसी लम्बी और मोटी हो जायेगी , जब मैं उसे खोलकर नहाऊंगा तो वह सांप जैसी जमीन तक पड़ी होगी | आप मुझे रोज कच्चा दूध पिलाती हैं और मुझे मक्खन-रोटी नहीं देती | यह सुनकर माँ यशोदा दोनों को चिरंजीव होने का आशीर्वाद देते हुए गले लगा देती हैं |

Exercise ( अभ्यास )
१. बोध प्रश्न : उत्तर लिखिए —

(क) ईश्वर किस तरह के लोगों के हृदय में निवास करता है ?

उत्तर- ईश्वर सच्चे लोगों के ह्रदय में निवास करता है |

(ख) सज्जन व्यक्तियों की तुलना वृक्षों और नदियों से क्‍यों की गईं है ?

उत्तर- सज्जन व्यक्ति परोपकारी होते हैं , वे बिना किसी स्वार्थ के लोगों की सहायता करते हैं |

(ग) बुरी संगत का प्रभाव किस प्रकार के लोगों पर नहीं पड़ता है ?

उत्तर- बुरी संगत का प्रभाव उत्तम प्रकृति के लोगों पर नहीं पड़ता है |

(घ) सज्जन व्यक्तियों की तुलना हीरे से क्‍यों की गई है ?

उत्तर- जिस प्रकार हीरा स्वयं का मूल्य दूसरों को नहीं बताता है उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति अपने गुणों का बखान स्वयं नहीं करते |

(ड) कृष्ण अपनी माँ यशोदा से क्‍या शिकायत करते हैं ?

उत्तर- कृष्ण अपनी माँ यशोदा से शिकायत करते हुए कहते हैं कि मेरे कई बार दूध पीने के बावजूद मेरी चोटी नहीं बढ़ रही है |

२. नीचे दी गई पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए –

(क) ‘परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर’।

भाव : सज्जन व्यक्ति परोपकार करने के लिए ही साधु का वेश धारण करते हैं |

(ख) ‘साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप’ |

भाव : सच्चाई से बढ़कर कोई तपस्या नहीं है |

(ग) रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय’।

भाव : रहीम जी कहते हैं, जिस प्रकार दूध फट जाने पर उसको मथने पर मक्खन नहीं निकलता है उसी प्रकार एक बार बात बिगड़ जाए तो कितना भी प्रयास किया जाय , बात नहीं बनती |

(घ) ‘रहिमन हीरा कब कहे, लाख टका मो मोल’ |

भाव : रहीम जी कहते हैं, जो बुद्धिमान और गुणी लोग होते हैं वे अपना गुणगान स्वयं नहीं करते जैसे बहुत कीमती हीरा स्वयं अपना मूल्य नहीं बताता है |

(ड) ‘काचौ दूध पियावत पचि-पचि, देत न माखन रोटी’।

भाव : कृष्ण अपनी माँ यशोदा से शिकायत भरे शब्दों में कहते हैं कि आप रोज हमें कच्चा दूध ही पिलाती हो कभी माखन-रोटी नहीं देती |

३. अधूरी पंक्तियों को पूरा कीजिए –

(क) जहाँ ज्ञान तहँँ धर्म है – जहाँ झूठ तहँ पाप ।

(ख) बिगरी बात बने नहीं – लाख करै किन कोय ।
(ग) बड़े बड़ाई न करै – बड़े न बोलै बोल।

४. तद्भव शब्दों का मिलान तत्सम शब्दों से कीजिए :-

तद्भवतत्सम
बिशालविशाल
परमारथपरमार्थ
छिमाक्षमा
संचैसंचय
वृच्छवृक्ष
मूरतिमूर्ति

५. आपकी कलम से –
कबीर और रहीम के दोहों में कई सीख छिपी हैं। उन्हें पता करके अपनी कॉपी में लिखिए।

उत्तर- छात्र स्वयं करें |

६. अब करने की बारी –

(क) इस पाठ के दोहे एवं पदों को प्रतिदिन पढ़कर दोहराइए | आप देखेंगे कि ये दोहे एवं
पद आपको स्वतः याद हो जाएँगे। इन्हें याद करके कक्षा में सुनाइए।

उत्तर- छात्र स्वयं करें |

(ख) कबीर और रहीम के अन्य दो-दो दोहों को दूँढकर लिखिए।

उत्तर- कबीर के दोहे –

  1. साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
    सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
  2. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय
    जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय

रहीम के दोहे –

  1. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर |
    पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ||
  2. दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय
    जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय

(ग) रहीम, कबीर, सूरदास जैसे बहुत से कवियों की रचनाएँ इंटरनेट पर उपलब्ध है। |
अपने शिक्षक से अनुरोध करके कंप्यूटर अथवा मोबाइल फोन पर इन्हें सुनिए तथा
वैसे ही सुनाने का अभ्यास कीजिए। |

उत्तर- छात्र स्वयं करें |

Name

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